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पत्नी की मांग
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किसी भी मनुष्य के शरीर का एक अंश देख ले, तो पूरा चित्र यथावत् बना सकता है।" राजा ने परीक्षा करने के लिए कब्जा दासी का केवल मुंह ही दिखाया और चित्रकार को उसका पूरा चित्र बनाने का कहा। चित्रकार ने चित्र बना दिया। राजा को चित्रकार की शक्ति पर विश्वास हो गया, फिर भी ऐसा चित्र बनाने के दण्ड स्वरूप उस चित्रकार के दाहने हाथ का अंगठा कटवा दिया। चित्रकार दुःखी हआ। वह यक्ष के मन्दिर में गया और उपवास पूर्वक आराधना की। यक्ष ने उसके वामहस्त में वही शक्ति उत्पन्न कर दी। अब चित्रकार ने राजा से अपना वैर लेने का निश्चय किया। उसने पुनः देवी मृगावती का चित्र एक पट्ट पर बनाया और अनेक प्रकार के आभूषणों से सुसज्जित किया। उसने सोचा--- किसी स्त्री-लम्पट बलवान राजा को दिखा कर शतानीक को अपने कुकृत्य का फल चखाऊँगा ।' उसने उज्जयिनी के चण्डप्रद्योत को वह चित्र दिखाया । चण्डप्रद्योत चित्र देखते ही मोहित हो गया।
पत्नी की मांग
चण्डप्रद्योत ने चित्रकार से पूछा--" चित्रकार ! तुम कल्पना करने और उसे चित्र में अकित करने में अत्यन्त कुशल हो। तुम्हारी कल्पना एवं कला उत्कृष्ट है । तुम अनहोनी को भी कर दिखाते हो।"
"नहीं, महाराज ! यह कल्पना नहीं, साक्षात् का चित्र है और इस मानव-सृष्टि का शृगार है"--कलाकार ने कहा ।
___“क्या कहा ? साक्षात् है ? कोई देवी है क्या ? मानुषी तो नहीं हो सकती''-- राजा ने आश्चर्य पूर्वक पूछा।
"महाराज ! यह देवी कौशाम्बी नरेश शनानीक की महारानी मगावती है। वह साक्षात् लक्ष्मी के समान है और चित्र से भी अधिक सुन्दर है।"
बम, चण्डप्रद्योत की अकांक्षा प्रबल रूप से भड़क उठो । उसने तत्काल एक दूत कौशाम्बी भेजा और शतानीक से उसकी प्राणवल्लभा मगावती की मांग की। यद्यपि चण्डप्रद्योत शतानीक का साढ़ था। मृगावती की बहिन शिवा उसकी रानी थी और शिवा भी मुन्दर थी। फिर भी कामान्ध चण्डप्रद्योत ने अपने साढू से उसकी पत्नी और अपनी साली की मांग--निर्लज्जता पूर्वक कर दी। उसके सामने न्याय-नीति और धर्म तथा लोकलाज उपेक्षित हो गई।
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