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________________ २६८ तीर्थकर चरित्र-भाग ३ कककककककककककककककककककककककककककककककककककककक्कयनककककककककक सती मृगावती चरित्र कौशाम्बी नरेश शतानीक अपनी ऋद्धि-सम्पत्ति से गदित था । वह सोचता था कि जित्नी सम्पत्ति और उत्तमोत्तम वस्तुएँ मेरे पास है, वैसी अन्यत्र नहीं है । वह अपने यहां आने-जाने वालों से पूछता रहता कि---"तुमने अन्यत्र कोई ऐसी वस्तु देखी है जो यहाँ नहीं है ।" एक ने कहा--" महाराज ! आपकी कौशाम्बी में कोई भव्य चित्रशाला दिखाई नहीं देती।" शतानीक ने यह त्रुटि मानी और तत्काल चित्रशाला बनवाने का काम प्रारंभ कर दिया। चित्रशाला बन जाने पर अच्छे निपुण एवं कुशल कलाकारों को नियुक्त कर दिये और कार्य चाल किया। कलाकारों ने कार्य का विभाजन कर लिया। उन कलाकारों में वह युवक भी था, जिसे साकेतपुर में यक्ष से चित्रकला की अद्भुत शक्ति प्राप्त हुई थी। उसे अंतपुर का भाग मिला । वह अपना कार्य तन्मयता से करता रहा । महाराज स्वयं भी चित्रशाला में विशेष रुचि लेते थे और स्वयं भी आ कर देखते रहते थे। अन्तपुर की चित्रशाला में महारानी मगावती+ देवी की भी रुचि थी। वह स्वयं चित्रकार को चित्र बनाते हुए परदे (चिक) के पीछे से देख रही थी। अचानक चित्रकार की दृष्टि उधर पड़ी और महारानी के पाँव का अंगूठा-- अंगूठो पहिने हुर-- दिखाई दिया। उसने सोचा--'महारानी मृगावती देवी होगी।' वह महारानी का चित्र बनाने लगा। जब वह महारानी के नेत्र बना रहा था, तो पीछी में से रंग के पर गिरी । उसने उसे पोंछा और आने कार्य में लगा, परन्तु पुनः उसी स्थान पर बूंद टपकी, फिर पोंछा और फिर टपकी। उसने सोचा--' महारानी की जंघा पर अवश्य ही लांछन होगा। इसीलिये ऐसा हो रहा है । देव कृपा से चित्र यथावत् बनेगा।" उसने उस चित्र को पूरा किया। महाराजा चित्रकार का काम देख रहे थे । महारानी का चित्र वे तन्मयता से देख रहे थे। उनकी दृष्टि जंघा पर रहे बिन्दु पर पड़ी और माथा ठनका --'महारानी की जंघा के लाञ्छन का पता चित्रकार को कैसे लगा ? अवश्य ही इनका अनैतिक सम्बन्ध होगा और चित्रकार ने वह लांछन देखा होगा।' राजा का क्रोध उभरा। चित्रकार को पकड़वा कर बन्दी बनाया गया। अन्य चित्रकारों ने महाराजा से निवेदन किया--"स्वामिन् ! युवक निर्दोष है । इस पर देव की कृपा है । देवप्रदत्त शक्ति से यह +कौशाम्बी नरेश शतानीक की रानी मुगावती, बहिन जयंती और पुत्र उदय का न मोल्लेख भगवती सूत्र शतक १२ उद्देशक २ में भी हुआ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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