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________________ चित्रकार की कला-साधना २९७ ककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककक चन्दन का विलेपन किया और मुंह पर आठ पट वाला वस्त्र बाँधा । फिर शान्त चित्त हो यक्ष का चित्र बनाया। चित्र पूर्ण कर के उसने यक्ष को प्रणाम किया और स्तुति करते हुए प्रार्थना की;-- "हे सुरप्रिय-देव श्रेष्ठ ! अत्यन्त निपुण चित्रकार भी आपके भव्य रूप का अ लेखन करने में समर्थ नहीं हो सकता, फिर मैं तो बालक हूँ। मेरी शक्ति ही कितनी ? फिर भी मैंने भक्ति पूर्वक आपका चित्र अंकित किया है। इसमें कितनी ही त्रुटियाँ होगी, किन्तु आप तो महान् हैं, क्षमा के सागर हैं, मेरी त्रुटियों के लिए मुझे क्षमा कर के इस चित्र को स्वीकार करें।" __चित्रकार का भक्तिपूर्ण शान्त मानस और एकाग्रता पूर्ण साधना से यक्ष प्रसन्न हुना और बोला; --" वाम ! मैं तुझ पर प्रसन्न हूँ । बोल क्या चाहता है तू ?" "देव ! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं, तो सभी चित्रकारों को अभयदान दीजिये । बम यही यानना है आपसे"--युवक ने कहा ।। "वत्स ! मैने तुझे अभयदान दिया, तो यह सब के लिए हो गया। अब किसी को भी नहीं मा रूँगा । यह निश्चय तो मैने तेरी साधना से ही कर लिया है।" "कृतार्थ हुआ, प्रभो ! आपने चित्रकारों और नगरजनों का भय सदा के लिए ममाप्त करके निर्भय बना दिया। इससे बढ़ कर और महालाभ क्या हो सकता है ? में तो इसी से महालाभ पा गया।" युवक की परोपकार-प्रियता से यक्ष अति प्रसन्न हुआ और बोला--"अब तक तुने दूसरों के लिए माँगा । अब अपने लिये भी माँग ले।" __"यदि आप मुझ पर विशेष कृपा रखते हैं, तो मझे ऐसी शक्ति प्रदान कीजिये कि मैं किसी स्त्री-पुरुष, पशु-पक्षी या किसी भी वस्तु को अंशमात्र भी देख लूं, तो उसका माग चित्र यथार्थ रूप में अंकित कर दूं।" । देव ने 'तथास्तु' कह कर उसकी माँग स्वीकार कर ली। युवक को जीवित लोटता देख कर नागरिकों के हर्ष का पार नहीं रहा । उसे धूमधाम पूर्वक वृद्धा के घर नाये । राजा और प्रजा ने युवक का बहुत सम्मान किया और उसे अपना उद्धारक माना। अब उसे शिक्षा प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं रही थी। वह वृद्धा को प्रणाम कर और मित्र की अनुमति ले कर अपने घर कौशाम्बी आया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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