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________________ चित्रका की कला-साधना ...........२९५ भविष्य में भी रहेगा । जीव अशाश्वत भी है--नरयिक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव-गति आदि पर्याय से परिवर्तित होता रहता है।" भगवान महावीर प्रभु की बात पर जमाली ने श्रद्धा नहीं की और चला गया और कई प्रकार की मिथ्या प्ररूपणा करता हुआ वह अन्य जीवो को भी भ्रमित करता रहा। एकबार जमाली अपने साधुओं के साथ श्रावस्ति नगरी में गया और उद्यान में ठहरा । साध्वी प्रियदर्शना भी उसी नगरी में 'ढक 'नाम के कुंभकार की शाला में थी। ढंक ऋद्धि सम्पन्न श्रमणोपासक था । ढंक ने सोचा कि 'किसी युक्ति से प्रियदर्शना साध्वी का भ्रम दूर करूँ।' उसने पके हुए मिट्टी के पात्र निभाड़े की अग्नि में से निकालते हुए चुपके से एक छोटा-सा अंगारा प्रियदर्शना के वस्त्र पर रख दिया। वस्त्र को जलता हुआ देख कर प्रियदर्शना बोली--" ढंक ! तुम्हारे प्रमाद से मेरा वस्त्र जल गया।" तत्काल ढक बोला--"आप झूठ बोलती हैं । आपके मत से वस्त्र जला नहीं, जल रहा है । भगवान् के मत से जला है, आपके मत से नहीं ।' प्रियदर्शना का भ्रम मिट गया । उसको पश्चात्ताप हुआ। वह साध्वियों के परिवार सहित भगवान के समीप गई और प्रायश्चित्त ले कर शुद्ध हुई। यह प्रसंग जब जमाली के साधुओं के जानने में आया, तो वे भी जमाली को छोड़ कर भगवान् के पास चले गये और जमाली अकेला रह गया। जमाली ने कई वर्षों तक श्रमणपर्याय का पालन किया। फिर अन्तिम समय निकट जान कर उसने अनशन किया और पन्द्रह दिन का अनशन पाल कर बिना आलोचना किये ही मर कर लांतक देवलोक में १३ सागरोपम की स्थिति वाला किल्विषी (चाण्डाल के समान अछूत घृणित) देव हुआ। ___ जमाली अनगार अरस-निरस-तुच्छ एवं रुक्ष आहार करने वाला और उपशांत जीवन वाला था। परन्तु आचार्यादि का विरोधी, द्वेषी, निन्दक एवं मिथ्या-प्ररूपक था। इससे वह निम्न काटि का देव हुआ । अब वह तिर्यंच, मनुष्य और देव के चार-पाँच भव कर के सम्यक्त्व सहित चारित्र पाल कर मुक्त हो जायगा। चित्रकार की कला-साधना साकेतपुर नगर में सुरप्रिय यक्ष का देवालय था। इस यक्ष का प्रतिवर्ष उत्सव मनाया जाता था। लोग भक्तिपूर्वक महापूजा करते । यक्ष देव का सुन्दर चित्र बनाया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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