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तीर्थङ्कर चरित्र-भाग ३ ......................................
कि 'क्रियमान' 'कृत' नहीं हो सकता । अतएव इस सत्य को स्वीकार करना चाहिए।"
जमाली की बात जिन श्रमणों को असत्य लगी, वे उसे छोड़ कर भगवान् के पास चले गए और शेष जमाली के साथ रहे।
___ साध्वी प्रियदर्शना भी अज्ञान एवं मोह के उदय से जमाली की समर्थक हो कर उसके पक्ष में चली गई। जमाली अपने मत का प्रचार करने लगा। वह लोगों को भगवान् की भल बता कर अपना मत चलाने लगा और अपने आप को सर्वज्ञ बताता हुआ विचरने लगा। . भगवान् चम्पा नगरी के पूर्णभद्र चैत्य में विराज रहे थे। उस समय जमाली भी विचरता हुआ चम्पा नगरी में भगवान् के समीप आया और भगवान् के समक्ष खड़ा रह कर बोला--
"आपके बहुत से शिष्य छद्मस्थ हैं और छद्मस्थ ही विचर रहे हैं, तथा छद्मस्थ ही काल करते हैं, परन्तु मैं छद्मस्य नहीं हूँ। मैं आपके पास से छद्मस्थ गया था, परन्तु मने केवलज्ञान प्राप्त कर लिया और केवली-विहार से विचर रहा हूँ।"
जमाली की बात सुन कर गणधर भगवान् गौतम स्वामी ने कहा--
"जमाली ! केवलज्ञानी का ज्ञान तो किसी पर्वत आदि से अवरुद्ध नहीं होता। यदि तू सर्वज्ञ है, तो मेरे दो प्रश्नों का उत्तर दे;--
प्रश्न-१ लोक शाश्वत है, या अशाश्वत ? और २ जीव शाश्वत है या अशाश्वत ?
गौतम स्वामी के प्रश्न सुन कर जमाली स्तब्ध रह गया । वह उत्तर नहीं दे सका। भगवान् महावीर प्रभु ने जमाली से कहा ;--
"जमाली ! इन प्रश्नों का उत्तर तो मेरे छद्मस्थ शिष्य भी मेरे समान दे सकते हैं, परन्तु वे अपने को केवल ज्ञानी नहीं बताते । तू तो अपने को केवलज्ञानी बता रहा है, फिर मौन क्यों रह गया ? सुन ;-लोक शाश्वत भी है और अशाश्वत भी। ऐसा नहीं कि लोक कभी नहीं था, वर्तमान में नहीं है और भविष्य में नहीं रहेगा। ल क था, है और भविष्य में भी रहेगा । लोक ध्रुव है, नियत है, शाश्वत है, अक्षय है, अव्यय है, अवस्थित है और नित्य है।
लोक अशाश्वत भी हैं, क्योंकि अवसपिणी काल हो कर उत्सर्पिणी काल होता है और उत्सपिणी काल के बाद अवसर्पिणी काल होता है । लोक की पर्याय पलटती रहती है।"
"जीव शाश्वत भी है । लोक के समान जीव पहले भी था, अभी भी है और
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