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________________ आर्द्रमुनि की गोशालक आदि से चर्चा 0000 Jain Education International के लिये संयम रूपी रस्से का अवलम्बन लिया । किन्तु मध्य में ही उस रस्से को छोड़ कर फिर कूएँ में गिर पड़ा। पूर्वभव में तो मैने मात्र मन से ही व्रत का भंग किया था, परन्तु इस भव में तो मैं पूर्ण रूप से पतित हो गया। अब जो भी समय रहा है, उसे सफल करना ही चाहिए।" उन्होंने पत्नी को समझाया और संयमी बन कर निकल गए । आर्द्रकुमार की रक्षा के लिए जो सैनिक नियत थे, उन्हें आर्द्रकुमार के भारत चले जाने का पता लगा, तो वे स्तब्ध रह गए । अब वे राजा के पास कौन सा मुँह ले कर जावें ? वे भी किसी प्रकार भारत आये और कुमार की खोज की। जब कुमार नहीं मिले तो वे नाश हो गए और जीवन चलाने के लिए चोरी-डकैती करने लगे । जब आर्द्रकुमार पुनः संयमी हो कर वसंतपुर से चले, तो मार्ग में उन रक्षकों का टोला मिलाजो लुटेरे हो गए थे । आर्द्रमुनि ने उन्हें प्रतिबोध दिया। वे सभी संयमी बन कर उनके शिष्य हो गए । अब पाँच सौ शिष्यों के साथ आर्द्रमुनि, भगवान् महावीर को वन्दन करने राजगृह जाने लगे । आर्द्रमुनि की गोशालक आदि से चर्चा मुनिराज आर्द्रकुमारजी अपने पाँच सौ शिष्यों के साथ विहार करते हुए राजगृह की ओर जा रहे थे । मार्ग में उन्हें गोशालक मिला। उसने आर्द्रकमुनि से कहा; -- " तुम जिस महावीर के पास जा रहे हो, वह तो ढोंगी है । पहले तो वह अकेला ही तपस्या करता हुआ विचरता था और एकान्त में रहता था । परन्तु अब तो उसने हजारों शिष्य बना लिये हैं और उनको साथ ले कर धर्म का प्रचार करने लगा है । अस्थिर चित्त वाले महावीर ने अपना प्रभाव बढ़ाने और आजीविका चलाने के लिये यह सब पाखण्ड खड़ा किया है । यदि एकान्तवास कर के तपस्या करना ही श्रेष्ठ था, तो वर्तमान में समूह में रहना बुरा है और वर्तमान चर्या ठीक है, तो पहले का एकान्तवास बुरा था। दो में एक तो बुरा है ही । इसलिये महावीर का विचार और आचार विश्वास के योग्य नहीं है । तुम उसके पास क्यों जा रहे हो ?" मुनिराज आर्द्रकुमारजी गोशालक का आक्षेप सुन कर उत्तर देते है--'" हे गोशालक ! तुम्हारा आक्षेप सम्यक् विचार युक्त नहीं है । भगवान् महावीर प्रभु की दोनों * यहाँ तक का वर्णन त्रिश. पु. च से लिया है । आगे सूत्रकृतांग श्रु. २ अ. ६ से लिया जायगा । २८३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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