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आर्द्र कुमार चरित्र
२७७ .............................................................. घटने वाली घटना कह सुनाई । अपनी भुगती हुई विडम्बना सुन कर आभीर महारानी संसार से ही विरक्त हो गई और महाराजा को आज्ञा प्राप्त कर भगवान के पास प्रवजित हो कर साध्वी बन गई।
आर्द्र कुमार चरित्र
समुद्र के मध्य में आर्द्रक नामक देश के आद्रिक नरेश और आर्द्रका रानी का पुत्र 'आई' नाम का राजकुमार था। वह यौवनवय प्राप्त करुणापूर्ण हृदय वाला कुमार भोगभोगता हुआ विचरता था। आर्द्रक नरेश का मगध नरेश महाराजा श्रेणिक के साथ पूर्वपरम्परा प्राप्त मैत्री सम्बन्ध था। एक बार मगधेश ने बहुमूल्य उपहार ले कर अपने एक मन्त्री को आर्द्रक नरेश के पास भेजा । मन्त्री ने प्रणाम पूर्वक आर्द्रक नरेश को अपने स्वामी की ओर से स्नेह सन्देश एवं कुशल पृच्छा के साथ ही उपहार समर्पित किये। आईक नरेश ने मागधीय मन्त्री का सत्कार किया और मगधेश की कशल-क्षेम पूछी। राजकुमार आद्रे भी सभा में उपस्थित था। उसने अपने पिता से मगधेश का परिचय और उनसे स्नेह-सम्बन्ध विषयक प्रश्न पूछा । आर्द्रक नरेश ने कहा--"मगधेश से हमारा स्नेह सम्बन्ध अपनी और उनकी कुन-परम्परा से चला आ रहा है।"
आर्द्र कुमार मगधेश के साथ अपनी कुल-परम्परा के सम्बन्ध में सोचने लगा। उसके मन में विचार हुआ कि मगध नरेश के कोई राजकुमार हो, तो मैं भी उनके साथ अपना मैत्री-सम्बन्ध स्थापित करूँ। उसने मागधमन्धी से पूछा--"आपके महाराजा के कोई ऐसा गुण निधान पुत्र है कि जिससे मैं भी सम्बन्ध जोड़ सकूँ।"
"युवराजश्री ! महाराजाधिराज श्रेणिक के 'अभयकुमार' नामक पुत्र सर्व-गुण सम्पन्न है और मेरे जैसे पाँच सौ मन्त्रियों का अधिक्षक है। बुद्धि का निधान, दक्ष, दयालु एवं समस्त कलाओं में निपुण है । अभयकुमार बुद्धि, पराक्रम, वीरता, निर्भयता, धर्मजतादि अनेक उत्तम गुणों का धाम है। राजनीति का पण्डित है और विश्वविश्रुत है। क्या आप अभयकुमार को नहीं जानते ?" ।
अभय कुमार के आदर्श गुण और विशेषताएँ सुन कर आर्द्रक नरेश ने अपने पुत्र से कहा--"पुत्र ! तुम स्वयं गुणज्ञ हो। तुम्हें अभी से अभयकुमार से भ्रातृभाव जोड़ लेना चाहिये।"
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