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________________ तीर्थंकर चरित्र भाग ३ ककककककककककककककककककक ककक ककककककककककक कककककक कककककककककक ककककककब २७६ एवं अल्हड़पन से हर्षोत्साहपुर्वक निःसंकोच इधर-उधर घूमती और देखता हुई उत्सव में लीन हो गई थी। इस उत्सव में महाराजा श्रेणिक और अभयकुमार भी श्वेत वस्त्रों स सुसज्ज हो कर पहुँचे । संयोग ऐसा हुआ कि मेले की भीड़ में अचानक महाराज का हाथ आभीरकन्या के वक्ष पर पड़ा। वे आकर्षित हुए और देखते ही उस पर मुग्ध हो गए । उदयभाव से प्रेरित हो कर उन्होने अपनी मुद्रिका उस अहीरकन्या के पल्ले में बांध दी और अभयकुमार से कहा; " किसी ने मेरी नामांकित मुद्रिका चुरा ली है। मुद्रिका सहित चोर को पकड़ कर मेरे सामने उपस्थित करो ।" अभयकुमार ने महोत्सव स्थल का एक द्वार खुला रख कर शेष सभी बन्द करवा दिये और खुले द्वार पर योग्य अधिकारियों के साथ स्वयं उपस्थित रहकर निकलने वालों के वस्त्रादि में मुद्रिका की खोज करवाने लगा । क्रमशः खोजते आभीर पुत्री के पल्ले से मुद्रिका मिली । उससे पूछा, तो वह बोली - " मैं नहीं जानती कि मेरे आँचल में यह मुद्रिका किसने बाँधी । मैं निर्दोष हूँ । मैंने पहले यह मुद्रिका देखी ही नहीं ।" बुद्धिमान् अभयकुमार समझ गए कि कुमारी निर्दोष है। महाराज ने रागांध हो कर स्वयं अपनी मुद्रिका इसके आंचल में बांधी होगी। वे उस कुमारी को ले कर महाराज के सामने आये और निवेदन किया; - - " महाराज ! मुद्रिका इस कन्या के पास से मिली । किन्तु मुझे यह मुद्रिका की चोर नहीं लगती। अनायास ही अनजाने आपके चित्त की चोर अवश्य लगती है । क्या दण्ड दिया जाय इसे ?" राजा हँसा और बोला- " इसे आजीवन अंतःपुर की बन्दिनी रहना पड़ेगा ।" श्रेणिक राजा ने उसके साथ लग्न किये और महारानी पद दिया । कालान्तर में राजा अपनी रानियों के साथ कोई खेल खेलने लगा । पहले से यह शर्त कर ली कि 'जो जीते, वह हारने वाले पर सवार होगा ।' खेल में जो रानियें जीती, उन्होंने तो राजा की पीठ पर अपना वस्त्र डाल कर ही शर्त पूरी कर ली, परन्तु आमोर कुल की रानी तो राजा की पीठ पर चढ़ कर ही रही । राजा को भगवान् के वचन का स्मरण हुआ और बोल उठा-" हे तो वेश्या-पुत्री न ही ? " 'मैं तो आभीर-पुत्री हूँ । आपने वेश्यापुत्री कैसे कहा "-- श्रेणिक ने भगवान् महावीर द्वारा बताया हुआ पूर्वजन्म, उत्पत्ति और भविष्य में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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