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तीर्थंकर चरित्र भाग ३
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और उपवन का निर्माण कर दिया । उत्तम भवन के साथ उपवन देख कर राजा अत्यन्त प्रसन्न हुआ | महारानी चिल्लना उस भवन में निवास कर अत्यन्त प्रसन्न हुई । अब राजारानी उसी भवन रह कर क्रीड़ा करने लगे ।
मातंग ने फल चुराये
राजगृह में एक विद्यासिद्ध मातंग रहता था । उसकी सगर्भा पत्नी को आम्रफल खाने का दोहद हुआ । मातगिनी ने पति से आम लाने का कहा, तो पति बोला- “ मूर्खा ! बिना ऋतु के आम कहाँ से लाऊँ ?" पत्नी ने कहा- 'महारानी के नये प्रासाद के उपवन में आम्रवृक्ष हैं । उन पर फल लगे हुए मने देखें हैं । आप किसी भी प्रकार आम ला कर मेरा दोहद पूरा करें ।"
मातंग उपवन में आया। उसने फलों से भरपूर आम्रवृक्ष देखें, किन्तु वे बहुत ऊँ थे । उनके फन तोड़ लेना अशक्य था । वह रात्रि के समय उद्यान में आया। उसने ' अवनामिनी' विद्या से वृक्ष की शाखा झुकाई और यथेच्छ फल तोड़ कर ले गया। प्रातःकाल रानी उपवन में गई और वाटिका की शोभा देखते उसकी दृष्टि उस आम्रवृक्ष की फलशून्य डाली पर पड़ी । वह समझ गई कि इसके फल किसी ने चुराये हैं । उसने राजा से कहा । राजा ने अभयकुमार से कहा ;- - फलों के चोर को पकड़ो। वह कोई विशिष्ट शक्तिशाली मनुष्य होना चाहिये, जो इस सुरक्षित वाटिका के अति ऊँचे वृक्ष पर से फल तोड़ गया और अपना कोई भी चिन्ह नहीं छोड़ गया । ऐसा चोर तो कभी राज्य भण्डार और अन्तःपुर में भी प्रवेश कर सकता है ।"
अमयकुमार ने आता शिरोधार्य को और चोर पकड़ने के लिए सतत प्रयत्न करने लगा ।
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अभयकुमार ने कहानां सुना कर चोर पकड़ा
चोर की खोज करते हुए महामन्त्री अभयकुमारजी एक नाटयशाला में गए। दर्शकों की भीड़ जमी हुई थी, परन्तु अत्रो नाटक प्रारंभ नहीं हुआ था । नट-नटो भी नहीं आए थे । अभयकुमार की विलक्षण बुद्धि को एक उपाय सुझा । मंच पर चढ़ कर दर्शक वर्ग को सम्बोधित करते हुए कहा ;
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