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________________ चिल्लना के लिए देव-निर्मित भवन የተትትትትትትትትትት******ቅቅቅቅቅቅቅቅቅቅቅቅቅቅቅቅቅቅቅቅቅቅቅቅቅ ताप की आग में जीवनभर जलते ही रहेंगे । इस विपत्ति को टालने और आपकी आज्ञा का तत्काल पालन करने के लिये मैने वे टूट-फूटी जीर्ण झोंपड़ियें जला दी। मैं बिना हिताहित का विचार किये इतना महान् अनर्थ कैसे कर सकता था ।" २६९ *+++++ अभयकुमार की बात ने राजा के हृदय पर मानो अमृत का सिंचन किया हो । वह हर्षावेग में उठा और पुत्र को छाती से लगाता हुआ बाला- "" "" 'पुत्र ! मैं धन्य हुआ तुझे पा कर । तू सचमुच बुद्धिविधान है। मेरा मूखता से मेरे मस्तक पर लगने वाले महाकलंक और जोवनभर के सन्ताप से तेने मुझे बचा लिया है।' पुत्र को पुरस्कृत कर के राजा अन्तःपुर में आया और महारानी चिल्लना और सभी रानियों को स्वस्थ एवं प्रसन्न देख कर सन्तुष्ट हुआ । चिल्लना के लिए देव निर्मित भवन श्रेणिक चिल्लना पर अत्यन्त आसक्त था। इस घटना और उसकी चरित्रशीलता, पवित्रता से वह विशेष कृपालु बन गया । उसने चिल्लना के लिए पृथक् एक भव्य भवनएक स्तंभ वाला भवन निर्माण करवाने की अभयकुमार को आज्ञा दी । अभयकुमार ने निपुण सूत्रवार को आदेश दिया- " तुम एक स्तंभ वाला भवन बनाने के योग्य उत्तम काष्ठ लाओ और कार्य प्रारंभ करो ।' सूत्रधार वन में गया । खोज करने पर उसे एक वैसा वृक्ष दिखाई दिया जो बहुत ऊँचा पत्रपुष्पादि से सघन सुशोभित सुन्दर एवं सुगन्धित था । उसका तना पुष्ट और भवन के लिये उपयुक्त था । बढ़ई ने सोचा- ऐसे मनोहर वृक्ष पर देव का निवास होता है । इसे सहसा काटने लगना दुःखदायक हो सकता है। इसलिए प्रथम देव की आराधना कर के उसे प्रसन्न करूँ । उसने उपवास किया और भक्तियुक्त गन्ध- दीप आदि से वृक्ष को अचित कर आराधना करने लगा । उस वृक्ष पर एक व्यंतर देव का निवास था । व्यंतर ने आराधक का भाव समझा और अभयकुमार के पास आ कर बोला- " में आपके लिये एक भव्य भवन का निर्माण कर दूंगा । उसके आसपास एक उद्यान भी होगा जो सभी ऋतुओं में उत्तम प्रकार के फूल और फल युक्त वृक्षों लताओं और गुल्मों से सुशोभित नन्दन वन के समान होगा । आप उस बढ़ई को वृक्ष काटने से रोक दें ।' अभयकुमार ने बढ़ाई को बुलवा लिया | व्यंतर ने अपने वचन के अनुसार भवन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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