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________________ २६८ ॐॐ 46 सेवक भेज कर जलवाया और नगर में अन्त पुर जलने की बात प्रचा त करवा दी । धर्मदेशना पूर्ण होने के बाद अवसर देख र श्रणिक ने भगवन् से पूछा: 'भगवन् ! रानी चिल्लना मुझ से ही सम्बन्धित है या किसी अन्य पुरुष से भी उसका गुप्त स्नेह-सम्बन्ध है ? " तीर्थंकर चरित्र भाग ३ ककक ककक कककककककक कककककककककक कककक ककककक " राजन् ! रानी चिल्लना सती है और तुम में ही अक्त है। उसके पर सन्देह नहीं करना चाहिए तुम्हें भ्रम हुआ है । रानी केशव प्रतिमाध मुनि को शीतवेदना के विचार से निकले थे । ' - भगवान् ने भ्रा मिटाया। + प्रभु का उत्तर सुन कर श्रेणिक को अपनी भूल खटकी। वह पश्चाताप तप्त होता हुआ उठा और भगवान् को वन्दना कर के वाहनारूढ़ हो शीघ्रता में दौड़ा। उसे भय था कि मेरी आज्ञा के पालन में अनर्थ नहीं हो गया हो । अभयकुमार भी भगवान् का वन्दना करने आ रहा था। सामना होते ही श्रेणिक ने पूछा - " मैंने तुझे जा आजा दा थी, उसका पालन हुआ ? , " 'आज्ञा का पालन उसी समय किया गया । देखिये, आग की लपटें और माँ अब तक दिखाई दे रहा है" - अभयकुमार ने कहा । " अरे अधम ! अपनी माताओं को जला कर मार डालते हुए तुझे कुछ भी संकोच नहीं हुआ ? और मातृ हत्या कर के तू अब तक जीवित रहा ? उनके साथ तू भी क्यों नहीं जल मरा ? " - रोषपूर्वक राजा बोला । " पूज्य ! में जिनेश्वर भगवन्त का उपासक हूँ । भगवन्त का उपदेश सुनने वाला आत्मघात कर के बाल-मरण नहीं मरता । समय आने पर मैं स्वयं त्यागी बन कर अन्तिम साधना करते हुए शरीर का त्याग करूंगा " - अभय ने कहा । तो समझ "तेने बिना विचार किये सहसा मेरी आज्ञा का पालन क्यों किया ? तू दार था । तुझे सोच समझ कर कार्य करना था। हाय..... राजा मूच्छित हो कर गिर गया । अभय ने शीतल जल से उपचार कर के राजा की मूर्च्छा हटाई और विनयपूर्वक बोला - " तात ! आपको जो आग की लपटें और धुआँ दिखाई दे रहा है, वह अन्तःपुर का नहीं, हस्तशाला की पुरानी कुटियों का है । अन्तःपुर में आपके चेहरे पर झलकता रोष देखा था और समझ गया था के वश हो, सहसा आपने यह अनिष्ट आदेश दिया है । मेरी माताएँ तो पवित्र हैं । मैं उनकी घात कैसे कर सकता था ? मैं जानता था कि भ्रम मिटने पर आपका कोप भी शान्त हो जायगा । उस समय आपके हृदय पर कितना आघात लगेगा और आप पश्चा तो सभी यथावत् है । मैने कि किसी निमित्त से आवेश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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