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________________ २६६ तीर्थंकर चरित्र - भा. ३ छुड़ाने का प्रयत्न करने लगे, तो वह उनके अंगों से चिपक गई और कहा - "यदि मुझ छोड़ कर चले गये, तो प्राण दे दूंगी।" उदयभाव वाले के लिए तो उसका क्षणिक स्पर्श ही पर्याप्त था । उदयभाव सफल हो गया। वे संयम छोड़ना नहीं चाहते थे, परन्तु उदयभाव ने रास्ता बता दिया । उन्होंने संयम छोड़ने के बदले यह प्रतिज्ञा की कि- " मैं उपदेश दे कर प्रतिदिन दस व्यक्तियों को भगवान् के समीप दीक्षित करवाता रहूँगा । यदि कभी दस पूरे नहीं होंगे, तो मैं स्वयं दीक्षित हो जाऊँगा । " उन्होने साधु का वेश उतार कर एक ओर रख दिया और वेश्या के साथ भोग भोगने लगे । तथा नित्य उपदेश दे कर दस या अधिक व्यक्तियों को भगवान् के पास दीक्षा लेने के लिए भेजते रहे। कितना ही काल इसी प्रकार व्यतीत हो गया और उदयभाव का जोर भी क्षीण हुआ । नन्दीसेनजी पुनः प्रव्रजित हुए एक दिन नन्दीसेनजी के उपदेश से नौ व्यक्ति ही प्रव्रजित हुए । दसवाँ व्यक्ति एक स्वर्णकार था । वह समझ ही नहीं रहा था । नन्दीमेनजी का प्रयत्न निष्फल हुआ। उसे समझाने में बहुत समय लगा, तो वेश्या ने भोजनार्थ बुलाने के लिये सेवक को भेजा । सेवक के बारबार आग्रह करने पर भी वे नहीं गए, तो वेश्या स्वयं आई । नन्दीमेनजी स्वर्णकार को नहीं समझा सके, तो अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार वे स्वयं पुनः दीक्षित होने के लिए तलर हो गए और भगवान् के समीप जा कर दीक्षित हो गए। कितने ही काल तक उन्होंने संयम-तप की विशुद्ध आराधना की और अनशन करके आयु पूर्ण कर स्वर्ग में देव हुए । श्रेणिक को रानी के शील में सन्देह महारानी चिल्लना के साथ महाराजा श्रेणिक अत्यन्त आसक्त हो कर भोगी जीवन व्यतीत कर रहा था । शीतकाल चल रहा था । पौष माघ की भयंकर शीत और साथ ही शूल के समान छाती में चुभने वाली वायु की हिम-सी शीतल लहरें अत्यन्त दुस्सह हो रही थी । श्रमण भगवान् महावीर प्रभु ग्रामानुग्राम विचरते हुए राजगृह पधारे और गुणशील उद्यान में बिराजे । भगवान् का पदार्पण सुन कर राजा श्रेणिक महारानी के साथ बन्दना करने गया । दिन के तीसरे पहर का समय था । लौटते समय जलाशय के निकट एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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