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तीर्थकर चरित्र-भा.३ ၆၀ ၀၈၈၆၀၃၇၈၀၀ ၈5 26 29
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भरना कठिन नहीं होता। अब आप इस कष्ट-क्रिया को छोड़ दें । मैं आपका नाथ बनूंगा और आपको ऐसे भोग-साधन अर्पण करूँगा कि जो सामान्य मनुष्यों को उपलब्ध नहीं । चलिये मेरे साथ।"
“नरेन्द्र ! तू स्वयं ही अनाथ है । पहले अपनी रक्षा का प्रबन्ध तो कर ले । जो स्वयं अनाथ है, वह दूसरों का नाथ कैसे बन सकता है '-महात्मा ने स्पष्ट शब्दों मे व हा ।
“मुनिजी ! आपने मुझे पहिचाना नहीं । इसीलिए आप बिना विचारे सहसा झूठ बोल गए । मैं मगध-देश का स्वामी हूँ। मेरा भण्डार बहुमूल्य रत्नों से भरा हुआ है। विशाल अश्व-सेना, गज-सेना, रथवाहिनी और पदाति-सेना मेरे अधीन है । एक-एक से बड़ कर सैकड़ों सुन्दरियों से सुशोभित मेरा अन्तःपुर है । मुझे उत्तमोत्तम भोग उपलब्ध है और समस्त राज्य मेरी आज्ञा के अधीन हैं । इतने विशाल साम्राज्य एवं समद्धि के स्वामी को 'अनाथ' कहना असत्य नहीं है क्या ? अब तो आप मुझे पहिचान गए होंगे । चलिये, मैं आपको सभी प्रकार के उत्तम भोग प्रदान करूँगा।"-श्रेणिक ने अपनी सनाथता बतलाते हुए पुनः अनुरोध किया।
"राजेन्द्र ! तुम भ्रम में हो । तुम्हें सनाथता और अनाथता का पता नहीं है । मैं अपनी जीवनगाथा सुना कर तुम्हें सनाथ-अनाथ का स्वरूप समझाता हूँ।"
"मैं कोशाम्बी नगरी में रहता था। 'प्रभुत धनसंचय' मेरे पिता थे-विपुल वैभव के स्वामी । यौवनावस्था में मेरी आँखों में अत्यन्त उग्र वेदना उत्पन्न हुई, जैसे कोई शत्रु शूल भोंक रहा हो । सारा शरीर दाहज्वर से जल रहा था । मेरा मस्तक फटा जा रहा था, जैसे-इन्द्र का वज्र मेरे मस्तक पर गिर रहा हो।"
___ "मेरे पिता ने अत्यन्त कुशल एवं निष्णात वैद्य बुलाये और प्रकाण्ड मन्त्रवादी और तान्त्रिकों से भी सभी प्रकार के उपचार कराये। मैं अपने पिता का अत्यन्त प्रिय था। वे मेरे स्वास्थ्य-लाभ के लिए समस्त सम्पत्ति अर्पण करने पर तत्पर थे। किन्तु मेरे पिता के समस्त प्रयत्न और वह वैभव मेरा दुःख दूर नहीं कर सके । यह मेरी अनाथता है।"
"मेरी ममतामयी माता मेरे दुःख से दुःखी और शोकसंतप्त थी। मेरे छोटे-बड़े भाई, वहिने, ये सभी मेरे दुःख से दुःखी थे । मुझ में पूर्णरूप से अनुरक्त मेरी स्नेहमयी पत्नी तो खान-पान एवं स्नान-मंजनादि सब छोड़ कर मेरे पास ही बैठो रोती रही । वह मुझसे एक क्षण के लिए भी दूर नहीं हुई। इस प्रकार समस्त अनुकूल परिवार, धन-वैभव. निष्णात वैद्याचार्य और उत्तमोत्तम औषधी । ये सभी उत्तम साधन मुझे दुःख से मुक्त कर के शांति पहुँचाने में समर्थ नहीं हुए। सभी के प्रयत्न व्यर्थ गए यही मेरी अनाथता है ।"
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