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________________ २५८ तीर्थकर चरित्र-भाग ३ कककककककककककककककककककककककककककककककककककक कककककककककककककककककर ककय हो गया। दुस्सह वेदना तीन दिनरात सहन करते हुए, सौ वर्ष की आयु पूर्ण कर तुम मेघ कुमार के रूप में उत्पन्न हुए। " मेघ मुनि तिर्यंच के भव में--तुम्हें पहले कभी प्राप्त नहीं हुआ ऐसा 'मन्यवःरत्न' प्राप्त हुआ । उस समय इतनी घोर वेदना सहन की और मनप्य-भव पा कर निग्रंथप्रवज्या अगीकार की, तो अब तुम यह सामान्य कष्ट भी सहन नहीं कर सके ? सोच कितुम्हारा हित किस में है ?" के भगवंत से अपना पूर्व-भव सुन कर मेघम न विचारमग्न हो गए । शभ भावों की वृद्धि से उन्हें जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ और उन्होंने स्वयं ही अपने पूर्वभव देख लिये। उनका संवेग पहले से द्विगुण बढ़ गया। उनकी आँखों से आनन्दाश्रु बहने लगे । उहोंने भगवान् को वन्दना कर के कहा-- "भगवन ! मैं भटक गया था । आपश्री ने मुझे संभाला. सावधान किया । अब आज से मैं अपने दोनों नेत्र (ईर्या शोधन के लिए) छोड़ कर शेष मारा शरीर श्रमण. निग्रंथों को समरित करता हूँ । अब मुझ पुनः दीजिन करने का कृपा करें ।' पुनः चारित्र ग्रहण कर के मेघमुनि आराधना करने लगे । उहोंने आनागंगादि ग्यारह अंगों का अध्ययन किया, तपस्या भी करते रहे। फिर उन्होंने भिक्ष की बारहप्रतिमा का पालन किया तत्पश्चात् गुणरत्न-सम्वत्सर तप किया और भी अनेक प्रकार की तपस्या करते रहे । अंत समय निकट जान कर भगवान् की आज्ञा मे विपुलाचल पर्वत पर चढ़ कर अनशन किया और एक मास का अनशन तथा बारह वर्ष की साधु-पर्याय पूर्ण कर काल को प्राप्त हुए । वे विजय नामक अनुत्तर विमान में देव हुए । वहाँ का तेतीस सागरोपम का आयु पूर्ण कर महानिदेह-क्षेत्र में मनुष्य-भव प्राप्त करेंग और संयमतप की आराधना कर के मुक्त हो जावेंगे । महाराजा श्रेमिक को बोध-प्राप्ति (महाराजा. श्रेणिक के चरित्र की कई कहानियाँ-श्रेणिक-चरित्र और रास-चौपाई में प्रचलित है। उनमें लिखा है कि श्रेणिक पहले विधी था और महारानी चिल्लना जिनोपासिका थी। महाराजा चेटक जिनोपासक थे। इसलिए महारानी भी जिनोपासक होगी ही। महारानी को अपने पति का मिथ्यान्व खटकता था। वे चाहती थी कि पति भी जिनोपासक हो जाय । इस विषय में उनमें वार्तालाप होता रहता। नाजा ने रानी को जिन-धर्म से वि करने का विचार किया। एकबार राजा ने अपने गुरुवर्ग की महत्ता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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