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________________ २५६ तीर्थङ्कर चरित्र--भाग ३ के लिये जाने-आने लगे। इससे उन श्रमणों में से किसी का पांव आदि अंग, मेघम नि के अंग से स्पर्श होते, उन संतों के पाँवों में लगी हुई रज, मेघनुनि के अंगों और मंस्तारक के लग गई और चलने फिरने से उड़ी हुई धूल से सारा शरीर भर गया। इससे उन्हें ग्लानि हुई, वे अकुला गए और रातभर नींद नहीं ले सके। उन्होंने सोचा;-- "जब मैं गृहस्थ था, राजकुमार था, तब तो श्रमण-निग्रंथ मेग आदर-सत्कार करते थे, किन्तु मेरे श्रमण बनते ही इन्होंने मेरा उपेक्षा कर दी और मैं कराया जाने लगा । अव प्रातःकाल होते ही भगवान् से पूछ कर अपने घर चला जाऊँ । मेरे लिए यही श्रयस्कर है ।" प्रातःकाल होने पर मेघमुनि भगवान् के निकट गए और वन्दना-नमस्कार कर के पर्युपासना करने लगे। मेघमुनि का पूर्वभव भगवान् ने मेवमुनि को सम्बोधन कर कहा;-- "मेघ ! रात्रि में हुए परोषह से विचलित होकर, तुम घर लौट जाने की भावना से मेरे निकट आये। वया यह बात ठीक है ?' "हां, भगवन् ! मैं इसी विचार से उपस्थित हुआ हूँ"-मेघमुनि बोले। "मेघ ! तुम इतने से परीषह से चलित हो गए ? तुमने पूर्वजन्म में कितने भीषण परीष सहन किये । इसका तुम्हें पता नहीं है । तुम अपने पिछले दो भवों का ही वर्णन सुन लो ;-- "मेघमुनि ! तुम व्यतीत हुए तीसरे भव में वैताइय-गिरि की तलहटी में 'सुमेरु प्रभ' नाम के गजराज थे। तुम सुडौल बलिष्ठ और सुन्दर थे। तुम्हारा वर्ण श्वेत था। तुम हजार हाथियों-हथि नियों के नायक थे । तुम आने समूह के साथ वनों में, नदियों में और जलाशयों में खाते-पोते और विविध प्रकार को कोड़ा करते हुए सुखपूर्वक विचर रहे थे। ग्रीष्मऋतु थी । सूखे वृक्षों की परस्पर रगड़ से अग्नि प्रज्वलित हो गई और भयानक रूप से घास-फप-वृक्षादि जलाने लगी। उसकी लपटें बढ़ती गई । धूम्र से आकाश आच्छादित हो गया। पशुओं-पक्षियों और अनेक प्रकार व जीवों के लिए मृत्यु-भय खड़ा हा गया। उनका आक्रन्द, चित्कार और अर्राहट से सारा वन भर रहा था। कोई इधरउधर भाग रहे थे, कोई जल रहे थे, तड़प रहे थे और मर रहे थे, असह्य गरमी से घवग रहे थे और प्यास से उनका कंठ सूख रहा था तुम स्वयं भी भयभीत थे । असह्य उष्णता से तुम अत्यन्त व्याकुल हुए पानी के लिए इधर-उधर भागने लगे। तुमने एक सरोवर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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