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मेघ कुमार की दीक्षा और उद्वेग
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.......................... धारिणं देवी का यह दोहद, ऋतु क अनुकूलता नहीं होने के कारण पूर्ण नहीं हो रहा था। अपना उत्कट मनोकामना पूर्ण नहीं होने से वह उदास एव चिन्तित रहने लगी। उसको शोभा कम हो गई और वह दुर्बल हो गई। परिचारिका ने कारण पूछा, तो वह मौन न्ह गई। परिचारिका ने महागनी की दशा महाराज को सुनाई । राजा तत्काल अन्तःपुर में आया । उमने रानी से इस दुर्दशा का कारण पूछा । बार-बार पूछने पर भी रान ने नहीं बताया, तो राजा ने शपथ पूर्वक पूछा। रानी ने अपना दोहद बतलाया। राजा ने उसे पूर्ण करने का आश्वासन दे कर संतुष्ट किया । अब राजा को रानी की मनोकामना पूर्व करने की चिन्ता लग गई । अभयकुमार ने आश्वासन दे कर राजा को संतुष्ट किया । अब अभयकुमार सोचने लगा कि छोटी माता का दोहद, मनुष्य की शक्ति के परे है। उसने पौधशाला में जा कर कर तेला किया और अपने पूर्वभव के मित्र देव का आराधन किया। देव आया और अकाल मेघवर्षा करना स्वीकार कर के चला गया। देव ने अपनी वक्रियशक्ति से बादल बनाये और सारा आकाश-मण्डल आच्छादित कर दिया । गर्जना हुई, बिजलियाँ चमकी और शीतल वायु के साथ वर्षा होने लगी। दोहद के अनुसार रानी सुसज्ज हो कर से चानक गंध-हस्ति पर बैठी । उस पर चामर डुलाये जाने लगे। तत्पश्चात् श्रेणिक राजा, गजारूढ़ हो कर धारिणी देवी के पीछे चला । धारिणी देवी आडम्बर पूर्वक नगर में घूमती हुई और जनता से अभिवंदित होती हुई उपवन में पहुँची और अपना मनोरथ पूर्ण किया।
__ गर्भकाल पूर्ण होने पर पुत्र का जन्म हुआ। दोहले के अनुसार उसका नाम 'मेघकुमार दिया । यौवन-वय में आठ राजकुमारियों के साथ उसका लग्न किया। वह भोग-मग्न हो कर जीवन व्यतीत करने लगा।
मेघकुमार की दीक्षा और उद्वेग
कालान्तर में श्रमण-भगवान् महावीर प्रभु राजगृह पधारे । मेघकुमार भी भगवान् को वन्दन करने गए। भगवान् का धर्मोपदेश सुन कर मेघकुमार भोग-जीवन से विरक्त हो गया और त्यागमय जीवन अपनाने के लिए आतुर हुआ। माता-पिता की अनुमति प्राप्त कर मेघकुमार भगवान् के समीप दीक्षित हो गया । दीक्षित होने के पश्चात् रात्रि को शयन किया । इनका संथारा, क्रमानुसार द्वार के निकट हुआ था। रात्रि के प्रथम एवं अन्तिम प्रहर में श्रमण-गण, वाचना, पृच्छना, परावर्तना तथा परिस्थापना
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