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मेघकुमार का जन्म
से उतरकर ने मुंह में
धारिणी' नाम की रानी थी। वह वारिणी देवो श्रेणिक को धारिणी देवी ने स्वप्न में एक विशाल गजराज को आकाश करते हुए देखा स्वप्न देव कर बात हुई और उ5 कर श्रेणिक के शयनकक्ष में आई। उसने अत्यंत मधुर, प्रिय एवं कल्याणकारी शब्दों से पति को जगाया। रानी के मधुर वचनों से जाग्रत हो कर राजा ने प्रिया को रत्नजड़िन भद्रासन पर बिठाया और इस समय आने का कारण पूछा। जोड़ कर स्वप्न सुनाया । स्वप्न सुन कर राजा अत्यंत प्रसन्न विचार कर के कहने लगा; -- " देवानुप्रिये ! लाभ के अतिरिक्त एक राज्याधिपति होगा ।"
महाराजा श्रेणि के
न
अनिप्रिय थी। किसी रात्रि में
तीर्थंकर चरित्र - भाग ३
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रानी ने विनय पुर्वक हाथ हुआ और स्वप्न फल
तुमने शुभ स्वप्न देखा है । इसके फल स्वरूप अनेक प्रकार के उत्तम पुत्र की प्राप्ति होगी। वह अपने कुल का दीपक होगा और
पति से स्वप्न फल सुन कर रानी हर्षित हुई और आज्ञा ले कर अपने स्थान पर आई । शष रात्रि उसने देवगुरु सम्बन्धी धर्म जागरण में व्यतीत की। प्रातः काल महाराजा ने भवन को विशेष अलंकृत कराया और सभा के भीतरी भाग में यवनिका (परदा ) लगवा कर उसके पीछे उत्तम भद्रासन रखवाया। धारिणी देवी, को आमन्त्रित कर यवनिका के भीतर भद्रासन पर बिठाया। तत्पश्चात् महाराजा ने स्वप्नपाठकों को बुला कर, राना का देखा हुआ स्वप्न सुनाया और उसका फल पूछा । स्वप्न- पाठकों ने स्वप्न का फल बताया । राजा ने उनका बहुत सत्कार किया, धन दिया और संतुष्ट कर के बिदा किया । धारिमदेव सावधानी से नियम पूर्वक गर्भ का पालन करने लगी ।
गर्भ का तीसरा मास चल रहा था कि धारिणी देवी के मन में अकाल मेघवर्षा का दोहद उत्पन्न हुआ । यथा; --
बिजलियाँ चमक रही हो, हरियाली छाई हुई हो और
इस वसंत ऋतु में आकाश-मण्डल में मेघ छाये हों, गजना हा रही हो, छोटी-छोटी बूंदे बरस रही हो, पृथ्वी पर सारा भूभाग एवं वृक्ष लताएँ, सुन्दर पुष्पादि से युक्त हो, ऐसे मनोरम समय में में सुन्दर वस्त्रालंकारों से सुसज्जित हो कर महाराज के साथ राज्य के प्रधान गजराज पर चढ़ कर, बड़े समारोह पूर्वक नगर में निकलूं और नागरिकजन का अभिवादन स्वीकार करती हुई वन-विहार करूँ ।
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