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तीर्थंकर चरित्र भाग ३
शय्या पर सुला दिया और वह मांस, नरेश की छाती पर बांध दिया। उधर माता की ला कर सामने की उच्च अट्टालिका पर बिठा दिया जहां से वह पति का मां कटते देख सके । इसके बाद अभयकुमार शस्त्र लेकर माँस काट कर एक पात्र में रखने लगा। ज्या ज्यों मांस कटता गया, त्यों-त्यों राजा कराहते - चिल्लाते रहे । मांस कट चुकने पर उनके छाती पर पट्टा बांध दिया और वे मूच्छित होने का ढोंग कर के अचेत पड़े रहे। अभ कुमार वह मांस चिल्लता को दिया और उसने अपना दोहद पूर्ण किया । खाते समय वह संतुष्ट हुई । दोहद पूर्ण होने के पश्चात् महारानी को पति घात का विचार हुआ। उसके हृदय को गंभीर आघात लगा और वह आक्रन्दपूर्ण चिल्लाहट के साथ मूच्छित हो कर ढल पड़ी । दासियाँ उपचार करने लगा । उपचार से वह चेतना प्राप्त करती. परन्तु पति घात का विचार आते ही वह पुनः मूच्छित हो जाती । राजा स्वयं रानी के पस आया । उसे सान्त्वना दी और अपना अक्षत वक्षस्थल दिखा कर संतुष्ट किया। उसकी प्रसन्नता का पार नहीं रहा । उसका आरोग्य सुधरने लगा और वह पूर्ववत् स्वस्थ हो गई। तत्पश्चात् चिल्लना को विचार हुआ कि 'गर्भस्थ जीव अपने पिता का शत्रु है । इसलिय इसे गर्भ में ही नष्ट कर के गिरा देना ही हम सब के लिए हितकारी होगा।' इस प्रकार उसने गर्भ गिराने के अनेक उपाय किये, परन्तु सभी निष्फल हुए और बिना किसी हानि के गर्भ बढ़ता रहा ।
रानी ने पुत्र जन्मते ही फिकवा दिया
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गर्भकाल पूर्ण होने पर महारानी ने एक सुन्दर एवं स्वस्थ पुत्र को जन्म दिया । पुत्र का जन्म होते ही माता ने परिचारिका की आज्ञा दी -" यह दुष्ट अपने पिता का ही शत्रु है, कुलांगार है । इसे दूर ले जा कर फेंक आ । हटा मेरे पास से ।" परिचारिका जात शिशु को स्वामिनी की आज्ञानुसार अशोकवन में उकरड़े पर फेंक आई । शिशु के पुण्य प्रबल थे | लौटती हुई परिचारिका को देख कर राजा ने पूछा-
" कहाँ गई थी तू ? तेरा काम तो देवी की सेवा में रहने का है और तू इधरउधर फिर रही हैं ?
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'स्वामिन् ! मैं स्वामिनी की आज्ञा से नवजात शिशु को फेंकने गई थी दासी ने पुत्र जन्मादि सारी बात बता दी ।
राजा स्वयं चल कर अशोक वन में गया और पुत्र को हाथों में उठा कर ले आया, फिर रानी को देते हुए कहा-
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