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चिल्लना का दोहद पूर्ण हुआ
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म्ल न, कान्तिहीन और पीतवर्णी हो गया। उसने वस्त्र, पुष्प, माला, अलंकार तथा शृंगार के सभी साधन त्याग दिये। वह निरन्तर घुलने लगी।
चिल्लना महारानी की ऐसी दशा देख कर उसकी परिचारिका चिन्तित हुई और महाराजा श्रेणिक से निवेदन किया। महाराजा तत्काल महारानी के निकट आये और स्नेहपूर्वक चिन्ता एवं दुर्दशा का कारण पूछा । पति के प्रश्न की प्रिया ने उपेक्षा की और मौन बनी रही, तब महाराजा ने आग्रह पूर्वक पूछा, तो बोली;--
"स्वामिन् ! आपसे छुपाने जैसी कोई बात मेरे हृदय में नहीं हो सकती । परन्तु यह बात ऐसी है कि कही नहीं जा सके। एक अत्यंत क्रूर राक्षसी के मन में भी जो इच्छा नहीं हो, वह मेरे मन में उठी है। ऐसी अधमाधम इच्छा सफल भी नहीं हो सकती। गर्भकाल के तीन मास पश्चात् मेरे मन में आपके कलेजे का मांस खाने का दोहद उत्पन्न हुआ । यह दोहद नितान्त दुष्ट, अपूरणीय, अप्रकाशनीय एवं अधमाधम है । इसकी पूर्ति नहीं होने के कारण ही मेरी यह दशा हई है।"
श्रेणिक महाराज ने महागनी को आश्वासन देते हुए कहा--"देवी ! तुम चिन्ता मत करो। मैं तुम्हारा दोहद पूर्ण करूँगा।"
चिल्लना का दोहद पूर्ण हुआ
महागनी को प्रिय वचनों से संतुष्ट कर महाराजा सभाकक्ष में आये और सिंहा. सन पर बैठ कर प्रिया को दोहद पूर्ति का उपाय सोचने लगे। उन्होंने बहुत सोचा, परन्तु कोई उपाय नहीं सूझा । वे चिन्तामग्न ही थे कि महामात्य अभय कुमार उपस्थित हुए और पिता को चिन्तित देख कर पूछा; --
"पूज्य ! आप चिन्तित क्यों हैं ? क्या कारण है उदासी का?"
"पुत्र ! तेरी छोटी माता का विकट दोहद ही मेरी चिन्ता का कारण बना है"राजा ने दोहद की जानकारी देते हुए कहा ।
"पिताश्री ! आप चिन्ता नहीं करें। मैं माता की इच्छा पूर्ण करूँगा।" पिता को आश्वस्त कर अभयकुमार स्वस्थान आये और अपने विश्वस्त गुप्तचर को बुला कर कहा--"तुम कसाई के यहाँ से रक्त-झरित ताजा मांस गुप्त रूप से लाओ।" गुप्त वर ने आज्ञा का पालन किया। अभयकुमार पिता के समीप आया और उन्हें शयनागार में ले जाकर
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