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________________ श्रेणिक चरित्र पवम गणधर श्री सुधर्मा स्वामी को दी। इसका कारण यह हुआ कि श्री इन्द्रभूतिजी तो भगवान् के निर्वाण के पश्चात् ही केवलज्ञानी होने वाले थे और अन्य गणधर भगवान् के निर्वाण के पूर्व ही मुक्ति प्राप्त करने वाले थे। इन लिए धर्मशासन का चिरकाल संचालन करने वाले प्रथम उत्तराधिकारी पंचम गणधर श्री सुधर्मास्वाम ही थे । इसी से भगवान् ने गण की अनुज्ञा इन्हीं को दी। और साध्वियों की शिक्षा-दीक्षा के लिए प्रतिनी पद पर आर्या चन्दनाजी को स्थापित किया। भगवान् कुछ दिन वहीं बिराजे । इसके बाद अन्यत्र विहार किया। श्रेणिक चरित्र श्रेणिक कुणिक का पूर्वभव + + तपस्वी से वैर भरत-क्षेत्र के बसंतपुर नगर में जितशत्रु राजा राज्य करता था । अमरसुन्दरी उसकी पटरानी थी। ‘सुमंगल' उनका पुत्र था । मन्त्री-पुत्र 'सेनक' राजकुमार सुमंगल का मित्र था। परन्तु दोनों का रूप समान नहीं था। राजकुमार सुरूपवान् तथा कामदेव के समान सुन्दर था, तो मन्त्रीपुत्र सेनक सर्वथा कुरूप कुलक्षणा एवं बेडौल था । उसके बाल पीले, नाक चपटी, बिल्ली, जैसी आँखे, ऊँट जैसी लम्बी गर्दन और ओष्ठ, चूहे जैसे, छोटे कान, कन्द के अंकुर जैसी दंतपंक्ति मह से बाहर निकली हुई, जलोदर रोगवाले जैसा पेट, जंघा छेटी और टेढ़ी तथा सूप के समान पांव थे। वह लोगों की हँसी का पात्र था। जब-जब यह कुरूप अपने मित्र राजकुमार सुमंगल के समीप आता, तब-तब कुमार उसकी हँसी करता रहता। इससे सेनक अपने को अपमानित मानता। अपने को सर्वत्र हँसी का पात्र समझ कर वह ऊब गया और संसार से विरक्त हो कर वन में चला गया। वह भटकता हुआ तापसों के आश्रम में पहुँच गया । कुलपति के उपदेश से वह भी तपस्वी बन ग और औष्ट्रिका व्रत ग्रहण कर के उग्र तप से आत्मदमन करने लगा । कालान्तर में वह बसंतपुर आया। राजकुमार सुमंगल को राज्याधिकार प्राप्त हो गये थे और वह राज्य का संचालन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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