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________________ तपस्वी सन्त बाजी हार गए ब्रह्मदत्त का जन्म ရာသောစာများFFFFFFFAFFFFAFFFFာရ नमूची को मुक्त कर दिया गया । किन्तु अब वह हस्तिनापुर का नागरिक नहीं यह सका । महाराजा ने उसे नगर से बाहर निकाल दिया । तपस्वी सन्त बाजी हार गए + + ब्रह्मदत्त का जन्म चक्रवर्ती सम्राट की पट्टमहिषी महारानी सुनन्दा, समस्त अन्तःपुर और अन्य परिवार सहित महात्माओं के दर्शनार्थ आई । तपस्वी सन्त को वन्दना करते हुए अचानक महारानी के कोमल केशों का स्पर्श तपस्वी सन्त के चरणों को हो गया । परम सौन्दर्यवती कोमलांगी राजरमणी के केशों के स्पर्श ने महात्मा को रोमांचित कर दिया। उन्होंने महारानी की ओर देखा । संगम और तपस्या के बन्धन और तप-ताप से जर्जर बने हुए काम को उभरने का अवसर मिल गया । कामना जाग्रत हुई और संकल्प कर लिया; 'मेरे उग्र तप के फल स्वरूप आगामी भव में में ऐसी परमसुन्दरी का समृद्धिमान् पति बनूं ।” आयु पूर्ण होने पर दोनों मुनि सोधर्म स्वर्ग के सुन्दर विमान में देव के रूप में उत्पन्न हुए । देवायु पूर्ण कर के चित्र मुनि का जीव, पुरिमताल नगर के एक महान् समृद्धिशाली सेठ का पुत्र हुआ और संभूति का जीव काम्पिल्य नगर के महाराजा ब्रह्म की रानी चुल्लनीदेवी के गर्भ में आया । माता ने चौदह महास्वप्न देखे | जन्म होने पर पुत्र का 'ब्रह्मदत्त' नाम दिया । राजकुमार बढ़ने लगा । ब्रह्म की राजधानी के निकट के चार राज्यों के अधिपति नरेश, ब्रह्म नरेश के मित्र थे । यथा--१ काशीदेश का राजा 'कटक' २ हस्तिनापुर का राजा 'करेणुदत्त ' ३ कोशल देश का राजा 'दीर्घ' और ४ चम्पा का राजा 'पुष्पचूल' । ये पांचों नरेश परस्पर गाढ़मंत्री से जुडे हुए थे । ये सब साथ ही रहते थे । इन्होंने निश्चय किया था कि एक वर्ष एक राजा की राजधानी में, पाँचों का अपने अन्तःपुर सहित साथ रहना । फिर दूसरे वर्ष दूसरे की राजधानी में । इसी प्रकार इनका साथ चलता रहता था । क्रमशः बढ़ते हुए ब्रह्मदत्त बारह वर्ष का हुआ। इस वर्ष चारों मित्र राजा, ब्रह्म राजा के साथ रहते थे । अचानक ब्रह्म राजा के शरीर में भयंकर रोग उत्पन्न हुआ और परलोकवासी हो गए। चारों मित्रों ने मिल कर ब्रह्म राजा की उत्तरक्रिया करवाई और कुमार ब्रह्मदत्त का राज्याभिषेक किया । चारों ने मिल कर निश्चय किया कि -- 'जब तक ब्रह्मदत्त बालक है, तब तक वे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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