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________________ मुनिराज चित्र-संभूति का अनशन तेजोलेश्या छोड़ कर लोगों को परितप्त करने का संभूति मुनिजी को भारी पश्चात्ताप हुआ। दोनों बन्धु मुनिवरों ने सोचा--" धिक्कार है इस शरीर और इसमें रही हुई जठराग्नि को कि जिसे शान्त करने के लिये आहार की आवश्यकता होती है और आहार याचने के लिये नगर में जाना पड़ता है, जिससे ऐसे निमित्त खड़े होते हैं । यदि आहार के लिए नगर में जाने की आवश्यकता नहीं होती, तो न तो यह उपद्रव होता और न मुझे दोष सेवन करना पड़ता । इसलिए अब जीवनभर के लिए आहार का त्याग करना ही श्रेयस्कर है ।" दोनों मुनिवरों ने संलेखनापूर्वक अनशन कर लिया और धर्मभाव में रमण करने लगे। राज्यभवन में प्रवेश कर के महाराजाधिराज ने नगर-रक्षक से कहा--"जिस अधम ने तपस्वी सन्त को अकारण उपद्रव किया, उसे शीघ्र ही पकड़ कर मेरे सामने उपस्थित करो। उस नराधम को मैं कठोर दण्ड दूंगा।" नगर-रक्षक ने पता लगा कर नमची प्रधान को पकड़ा और बाँध कर नरेश के समक्ष खड़ा कर दिया। महाराजाधिराज ने नमूची से कहा;-- "रे अधमाधम ! तू राज्य का प्रधान हो कर भी इतना दुष्ट है कि तपस्वी महात्मा को--जिनके चरणों में इन्द्रों के मुकुट झुकते हैं और जो परम वन्दनीय हैं--तूने अकारण ही पिटवा कर निकलवा दिया ? बोल, यह महापाप क्यों किया तेने ?" नमूची क्या बोले ? यदि वह कुछ झूठा बचाव करे, तो भी उसकी कौन माने ? तपस्वी मुनिराज की तप-शक्ति का प्रभाव तो सारा नगर देख ही चुका है । वह मौन ही खड़ा रहा । राजेन्द्र ने आज्ञा दी ;-- ___ "इस दुष्ट को इस बन्दी दशा में ही सारे नगर में घुमाओ और उद्घोषणा करो कि इस अधम ने तपस्वी महात्मा को पीड़ित किया है । इससे महाराजाधिराज ने इसे प्रधानमन्त्री के उच्च पद से गिरा कर दण्डित किया है।" नमूची को बन्दी दशा में नगर में घुमा कर उद्यान में महात्माओं के पास लाया गया । महाराजा सनत्कुमार ने महात्माओं से कहा-- __ "आपका अपराधी आपके समक्ष उपस्थित है । आप इसे जैसा दण्ड देना चाहें, देवें।" महात्मा ने कहा--" राजन् ! आप इसे छोड़ दीजिये । अपनो करणी का फल यह अपने-आप भोगेगा।" www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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