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________________ २१० तीर्थकर चरित्र-भाग ३ __ महारानी को शान्त कर के महाराजा बाहर आये और मन्त्री को बुला कर भगवान् का अभिग्रह जानने और शीघ्र ही पारणा करवाने का आदेश दिया । मन्त्री ने कहा “महाराज ! यह चिन्ता मुझे भी सता रही है । भगवान् के अभिग्रह को जानने का कोई साधन मेरे पास नहीं हैं। मैं स्वयं भी उस उपाय की खोज में हूँ कि जिससे भगवान् की प्रतिज्ञा जानी जा सके ।" महाराज ने तथ्यकंदी नाम के उपाध्याय को बुलाया । वह सभी धर्मों के आचार आदि शास्त्रों का ज्ञाता था। उससे भगवान् के अभि ग्रह के विषय में पूछा । उपाध्याय ने कहा ;-- "राजेन्द्र ! महर्षियों ने द्रव्य, क्षेत्र, काल और भव के भेद से अनेक प्रकार के अभिग्रह बतलाये हैं। परन्तु भगवान् ने कौन-सा अभिग्रह लिया है, यह तो विशिष्ट ज्ञानी के अतिरिक्त कोई नहीं बता सकता।' राजा ने हताश हो कर नगर में घोषणा करवाई कि-- "भगवान् महावीर ने किसी प्रकार का अभिग्रह धारण किया है । नगर में जिसके घर भगवान् पधारें, उसे विविध प्रकार की निर्दोष सामग्री भगवान् के सामने उपस्थित कर के पारणा हो जाय-ऐसा प्रयत्न करना चाहिये।" राजा-प्रजा सभी चिन्तित थे। दिन व्यतीत होते गए । भगवान् भिक्षाचरी के लिए दिन में एक बार निकलते रहे और बिना लिये ही लौटते रहे । भगवान् की शान्ति, धैर्य, क्षमता एवं निराकूलता में कोई अन्तर नहीं आया। चन्दनबाला चरित्र + + राजकुमारी से दासी भगवान् के अभिग्रह से कुछ काल पूर्व की घटना है । चम्पानगरी में 'दधिवाहन' राजा का राज्य था। कौशाम्बी का 'शतानिक' राजा, दधिवाहन राजा से वैर रखता था। एकबार शतानिक राजा ने अचानक विशाल सेना के साथ, रात्रि के समय चम्पानगरी पर आक्रमण कर के घेरा डाल दिया । दधिवाहन इस आकस्मिक आक्रमण से घबड़ाया और राज्य छोड़ कर निकल भागा । राजा के भाग जाने पर रक्षा का कोई प्रयत्न नहीं हुआ । शतानिक ने सैनिकों को आदेश दिया-- --"जाओ, इस नगरी को लूट लो । इस लूट में जिसको जो वस्तु मिलेगी, वह उसी की होगी।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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