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भगवान् का महान् विकट अभिग्रह
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"नहीं, नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है । मुझे खेद इस बात का है कि श्री महावीर प्रभु अपने घर पधारे और बिना पारणा लिये यों ही लौट गए। भगवान् ने कोई ऐसा गूढ़ अभिग्रह लिया है जो चार महीने बीत जाने पर भी पूरा नहीं हुआ। आप बुद्धिनिधान हैं । अत्यन्त गूढ़ राजनीतिज्ञों के मन के भाव, उनका चेहरा देख कर ही आप जान लेते हैं, तो अब अपनी इस बुद्धि से भगवान् के अभिग्रह का पता लगा कर, पारणा करने को अनुकूलता करें। यदि आप ऐसा कर सकेंगे, तो मैं अपने को धन्य समझँगी । अन्यथा आपकी बुद्धि का मेरे लिए कोई सदुपयोग नहीं हैं " - नन्दा ने पति से कहा ।
"प्रिये ! इच्छा आकांक्षा आकुलता एवं स्वार्थयुक्त हृदय की बात, उनके पूर्व सम्बन्ध आदिको स्मृति में रखते हुए जान लेना सरल भी होता है । परन्तु जिनके हृदय में किसी प्रकार की आकूलता नहीं, भौतिक आकांक्षा नहीं, चञ्चलता नहीं, ऐसे महात्मा का मनोभाव जानने की शक्ति साधारण मनुष्य में नहीं हो सकती। फिर भी में भरसक प्रयास करूँगा ।" पति-पत्नी का उपरोक्त वार्तालाप, महारानी मृगावती की विजया नाम की दासी ने भी सुना । वह महारानी का कोई सन्देश ले कर नन्दा देवी के पास आई थी। उसने यह बात महारानी मृगावती से कही । मृगावती भी भगवान् की लम्बे काल की तपस्या और अपूर्व गूढ़ अभिग्रह जान कर चिन्तित हुई । वह इसी विचार में लीन थी कि महाराजा अन्तःपुर में आये और महारानी से खेद का कारण पूछा । महारानी ने कुछ भृकुटी चढ़ा कर कहा ;
उन्होंने कोई
" आप कैसे प्रजापालक नरेश हैं ? आपको तो सब का पालन करना होता है, फिर आपको इस नगर में ही भ० महावीर जैसे महान् सन्त, चार महीने से आहार -पानी नहीं ले रहे हैं । भिक्षाचरी के लिये निकलते हैं और बिना लिये ही लौट जाते हैं। वे आहारपानी क्यों नहीं लेते ? यह तो निश्चित है कि लम्बी तपस्या नहीं की है, अन्यथा वे भिक्षाचरी के लिए निकलते ही नहीं उन्होंने कोई अभिग्रह लिया है, उसकी पूर्ति नहीं हो तब तक वे आहारादि नहीं लेंगे । आपको किसी भी प्रकार से यह पता लगाना चाहिये कि वह गूढ़ प्रतिज्ञा क्या है ? आपके इतने निष्णात भेदिये और बुद्धिमान मन्त्री किस काम के हैं ? विश्व-विभूति परमपूज्य भगवान् के अभिग्रह का भी पता नहीं लगा सके तो वे धिक्कार के पात्र नहीं हैं क्या ? " - महारानी का रोष बढ़ता जा रहा था । 'शुभे ! तुम्हें धन्य है । तुम्हारा धर्मानुराग प्रशंसनीय है । तुमने मुझ प्रमादी को उचित शिक्षा दी और कर्तव्य का भान कराया। मैं शोघ्र ही भगवान् के अभिग्रह की जानकारी प्राप्त कर के कल ही पारणा हो जाय ऐसा प्रयत्न करूँगा ।"
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