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________________ पूरन की दानामा साधना और उसका फल ဖဖဖဖုနywv••၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀ अन्तिम प्रहर में पूरन के मन में विचार उत्पन्न हुआ कि--"मेरे पूर्वभव के शुभकर्मों का फल है कि मेरे यहां धनधान्य सोना-चांदी और मणि-मुक्तादि तथा सभी प्रकार की सुख सामग्री निरंतर बढ़ती रही है । मैं पौद्गलिक विपुल सम्पदा का स्वामी हूँ। मेरे कौटुम्बिक और मित्र-ज्ञातिजन मेरा आदर-सत्कार करते हैं और मुझे अपना नायक-स्वामी मानते हुए सेवा करते हैं । किन्तु मैं जानताहूँ कि पूर्वोपाजित पुण्य का क्षय हो रहा है। यदि मैं अपनी सुख-समृद्धि में मग्न रह कर शुभकर्मों को समाप्त होने दूंगा, तो भविष्य में दुःखद स्थिति उत्पन्न हो जायगी। उस समय मैं क्या कर सकूँगा ? इसलिये मुझे अभी से मावधान हो जाना चाहिए । शुभोदय की दशा में ही मुझे अपना सुखद भविष्य बना लेना चाहिए।" इस प्रकार निश्चय कर के उसने दूसरे दिन एक प्रीतिभोज का आयोजन किया और अपने मित्र-ज्ञाति स्वजनादि को आमन्त्रित कर, आदरयुक्त भोजन कराया, वस्त्राभूषण प्रदान किये और उनके समक्ष अपने ज्येष्ठ पुत्र को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। इसके बाद उसने अपने भावी जीवन के विषय में कहा--"मैं संसार से विरक्त हूँ। अब मैं 'दानामा प्रव्रज्या'* स्वीकार कर के तपस्यायुक्त साधनामय जीवन व्यतीत करूँगा।" पूरन गृहस्वामी ने चार खण्ड वाला लकड़ी का एक पात्र बनवाया और दानामा दीक्षा अंगीकार की। उसने प्रतिज्ञा की कि मैं निरन्तर बैले बेले तपस्या करता रहूँगा और आतापना भूमि पर सूर्य के सम्मुख खड़ा रह कर ऊँचे हाथ किये हुए आतापना लूंगा। पारणे के दिन बेभेल गांव में ऊँचनीच और मध्यम कुल में भिक्षाचरी के लिये जाऊँगा। भिक्षा-पात्र के प्रथम खण्ड में जो आहार आवे, उसे मार्ग में मिलने वाले पथिकों को दूंगा। दूसरे खण्ड में आई हुई भिक्षा कुत्तों-कौओं को, तीसरे खण्ड की मछलियों और कछुओं को दूंगा तथा चौथे खण्ड में आई हुई भिक्षा स्वयं खाऊँगा।" इस प्रकार प्रतिज्ञा कर के वह दीक्षित हो गया और उसी प्रकार साधना करने लगा। इस प्रकार के उग्र तप से पूरन तपस्वी का शरीर बहुत दुर्बल एवं मांस-रहित हो गपा । वह अशक्त हो गया। उसने अब अन्तिम माधना करने का निश्चय किया और अपनी पादुका कुण्डी और काष्ठपात्र आदि उपकरणों को एक ओर रख दिया। फिर भूमि साफ की और आहार-पानी का त्याग कर के पादपोपगमन संथारा कर लिया। * त्रि. श. पु. च. में 'प्रणामा' दीक्षा का उल्लेख है, यह बात गलत है। भगवती सूत्र शतक ३ उद्देशक २ में 'दानामा' लिखा है। प्रणामा दीक्षा तो तामली तापस की थी (शतक ३ उद्देशक १)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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