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तीर्थङ्कर चरित्र--भाग ३
दान की महिमा के घोष की ध्वनि आई, तो वह निराश हो कर अपने-आपको धिक्कारने लगा।
जीर्ण और नवीन सेठ में बढ़ कर भाग्यशाली कौन ?
पारणा करने के पश्चात् भगवान् विहार कर गए । उसके बाद उसी उद्यान में मोक्ष प्राप्त भगवान् पार्श्वनाथजी की परम्परा के एक केवली भगवान् पधारे । नरेश और नागरिक वन्दन करने गये । भगवान् महावीर के आहारदान की ताजी ही घटना थी। नरेश ने केवली भगवान् से पूछा--"भगवन् ! इस नगर में विशेष पुण्योपार्जन करने वाला महाभाग कौन है ?"
__ "जीर्ण-श्रेष्ठी महान् पुण्यशाली है"--भगवान् ने कहा। "भगवन् ! जीर्ण-श्रेष्ठी ने तो भगवान् को दान भी नहीं दिया और कोई पुण्य का कार्य भी नहीं किया। दूसरी ओर नवीन सेठ ने भगवान् को महादान दिया और देवों ने उसके घर पाँच दिव्य वस्तुओं की वर्षा की तथा उसका गुणगान किया था। फिर नवीन से बढ़ कर जीर्ण कैसे हो गया ?"--नरेश और श्रोताओं ने पूछा।
___ "नवीन सेठ के यहाँ भगवान् को आहारदान हुआ, वह द्रव्य-दान हुआ--उपेक्षा पूर्वक । देवों ने भगवान् की दीर्घ तपस्या का पारणा होने की प्रसन्नता में हर्ष व्यक्त किया तथा पारणे का निमित्त नवीन सेठ हुआ था, इसलिये उसकी प्रशंसा भी हुई। उसे इस दान का फल द्रव्य-वर्षा से अर्थप्राप्ति रूप ही हुआ। परन्तु जीर्ण-श्रेष्ठी की भावना बहुत उत्तम थी । वह आहारदान की उच्च भावना से बारहवें स्वर्ग के महान् ऋद्धिशाली देव होने का पुण्य प्राप्त कर चुका है। यदि उसकी भावना बढ़ती ही रहती और देवदुंदुभि नाद के कारण विक्षेप नहीं होता, तो उसकी आत्मा, केवलज्ञान प्राप्ति तक बढ़ सकती थी।" केवली भगवान् का उत्तर सुन कर सभी लोग विस्मित हुए ।
पूरन को दानामा साधना और उसका फल
विंध्याचल पर्वत की तलहटी में 'विभेल' नामक गांव में, पूरन नाम का एक गृहपति रहता था। वह धनधान्यादि से सम्पन्न एवं शक्तिशाली था । एक बार रात्रि के
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