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________________ जीर्ण सेठ की भावना २०१ विपक्कककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककब आ कर भगवान् की वन्दना की। वहाँ से भगवान् वाराणसी पधारे । वाराणसी से राजगृही पधारे और प्रतिमा धारण कर के स्थिर हो गए। वहाँ ईशानेन्द्र ने आ कर भगवान् को वन्दना की । वहाँ से भगवान् मिथिला पधारे । वहाँ धरणेन्द्र आया और भगवान् को वन्दन नमस्कार किया। मिथिला से विशाला पधारे और यहाँ ग्यारहवाँ चातुर्मास किया। इस चातुर्मास में भगवान् ने चार मास का तप किया। यहाँ भूतेन्द्र और नागेन्द्र ने आ कर भगवान् की भक्तिपूर्वक वन्दना की। जीर्ण सेठ की भावना विशाला में जिनदत्त नाम का एक उत्तम श्रावक था । वह धर्म-प्रिय, दयालु और श्रमणों का उपासक था । धन-सम्पत्ति का क्षय हो जाने से वह जीर्ण (जूना-जर्जर ) सेठ के नाम से प्रसिद्ध था। एक बार वह किसी कारण से उद्यान में गया। वहाँ बलदेव के मन्दिर में भगवान् प्रतिमा धारण किये हुए थे। भगवान् को देख कर उसने समझ लिया कि “ये चरम तीर्थंकर हैं।" उसने भक्तिपूर्वक वन्दना की और मन में भावना करने लगा कि “इन महर्षि के आज उपवास होगा। यदि ये कल मेरे यहाँ पधारें और मुझे इन्हें आहार-पानी देने का सुयोग प्राप्त हो, तो बहुत अच्छा हो।" इस प्रकार भावना करता हुआ वह प्रतिदिन भगवान के दर्शन-वन्दन करता और भगवान् के भिक्षार्थ पधारने की प्रतीक्षा करता रहा, परन्तु भगवान् के तो चौमासी तप था। इस प्रकार वर्षाकाल के चार महीने व्यतीत हो चुके । भगवान् का चौमासी तप पूरा हो गया । भगवान् पारणे के लिये पधारे। उस नगर में एक नवीन श्रेष्ठी भी था, जो वैभव सम्पन्न था । वह ऐश्वर्य के मद में चर, तथा मिथ्यादृष्टि था। भगवान् उस नवीन सेठ के घर भिक्षार्थ पधारें। सेठ ने अपनी दासी को पुकार कर कहा--" इस भिक्षुक को भोजन दे कर चलता कर ।" दासी एक काष्ठयात्र में सिझाये हुए कुल्माष लाई और भगवान् के फैलाये हुए हायों में डाल दिये । भगवान् ने पारणा किया। देवों ने प्रसन्न हो कर पंच-दिव्य की वृष्टि कर के दान की प्रशंसा की। इससे प्रभावित हो कर राजा सहित सारा नगर नवीन सेठ के यहाँ आया और उसके भाग्य एवं दान की सराहना करते हुए उसे धन्यवाद देने लगे। उधर जीर्ण सेठ पूर्ण मनोयोग से भगवान् के पधारने की प्रतीक्षा कर रहा था। जब उसके कानों में देव-दुंदुभि और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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