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________________ १९४ तीर्थङ्कर चरित्र -- भाग ३ कककककककक ककककककककककककक ककककककककककककककक ककक ककक ककककककककककककककककककक परन्तु भगवान् की ध्यान-मग्नता में किञ्चित् मात्र भी अन्तर नहीं आया । ८ तत्पश्चा संगम ने मूसक-सेना खड़ी की। वे अपने मुँह, दाँत और नख भगवान् के शरीर को कुतरने और बिल बनाने जैसे छेद करने लगे और उन घावों पर मूत्र कर के उग्र वेदना उत्पन्न करने लगे । ६ अब संगम प्रचण्ड गजराज बना कर लाया। उसके बड़े-बड़े दाँत थे । अपने पाँव को भूमि पर पछाड़ कर वह भूमि को धँमाने और दीर्घ सूंड ऊँची कर के आकाशस्थ नक्षत्रों को ग्रहण करने जैसी चेष्टा करने लगा । वह हाथी, भगवान् पर झपटा और भगवान् को उछाल दिया। फिर अपने दाँतों पर झेला इसके बाद भूमि प्रहार करने लगा कि जिससे हड्डियाँ चूर-चूर हो जाय । परन्तु सूंड से पकड़ कर आकाश पर डाल कर दाँतों से ऐसे यह यत्न भी व्यर्थ हुआ । १० हथिनी उपस्थित की। उसने भी वैरिणी की भाँति कर गिराने और दाँतों से घायल कर घावों पर मूत्र कर के कर दी । ११ एक भयानक पिशाच की विकुवर्णा कर के उपस्थित किया । उसका मुँह गुफा के समान था और उसमें से ज्वालामुखी के समान लपटें निकल रही थी । उसके मुंह पर अत्यन्त विकरालता छाई हुई थी । मस्तक के केश सूखे घास के समान खड़े थे। हाथ तोरणथंभ जैसे लम्बे थे । उसकी जंघा ताड़वृक्ष के समान लम्बी थी । नेत्र अंगारे के समान लाल थे, जिनमें से अग्नि की चिनगारियाँ निकल रही थी और नासिका के छिद्र चूहों के बिल के समान थे जिनमें से धूआँ निकल रहा था । दाँत पीले और कुदाल के समान लम्बे थे । वह अट्टहास करता था और 'किल किल' शब्द कर के फुत्कार करता हुआ भगवान् की ओर बढ़ा । उसके हाथ में खड्ग था । उसने भी भगवान् को घोर दुःख दिया, परन्तु परिणाम वही निकला जो अब तक निकलता रहा । मस्तक से धक्का मार महान् जलन उत्पन्न १२ अब विकराल सिंह सामने आया । वह इस प्रकार भूमि पर पूँछ पछाड़ रहा सारा प्रदेश भयाक्रांत हो गया भगवान् के शरीर को विदीर्ण था कि जैसे पृथ्वी को फाड़ रहा हो । उसकी घोर गर्जना से था । वह अपने त्रिशूल जैसे नखों और वज्र जैसी दाढ़ों करने लगा । अन्त में वह भी हार कर ढीला हो गया । १३ अब संगम भगवान् के स्वर्गीय पिता श्री सिद्धार्थ नरेश का रूप धर कर उपस्थित हुआ और कहने लगा- " हे पुत्र ! यह अत्यन्त दुष्कर साधना तुम क्यों कर रहे हो ? यह व्यर्थ का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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