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________________ संगम के भयानक उपसर्ग ककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककर कायकष्ट है । इससे कोई लाभ नहीं होगा। मैं दुःखी हो रहा हूँ । नन्दीवर्धन मुझे छोड़ कर चला गया है । मैं वृद्ध हूँ और भयंकर रोग मुझे सता रहे हैं । इस वृद्धावस्था में मेरी सेवा करना तुम्हारा परम धर्म है।" पिता बोलते बन्द हुए, तो माता सम्मुख आ कर विलाप करती हुई, अपनी व्यथाकथा सुना कर घर चलने का आग्रह करने लगी। परन्तु भगवान् पर किसी भी प्रकार का प्रभाव नहीं पड़ा और संगम का यह प्रयत्न भी व्यर्थ गया। १४ पथिकों के विशाल पड़ाव की रचना की। उनका एक रसोइया भोजन पकाने के लिए चूल्हा बनाने को पत्थर खोजने लगा। पत्थर नहीं मिले, तो भगवान् के दोनों पांवों के बीच अग्नि जला कर भात सिझाने के लिए भाजन रख दिया । वह आग भी देवनिर्मित अत्यन्त उष्ण थी। प्रभु को अत्यन्त वेदना हुई, परन्तु उनकी धीरता, शान्ति एवं अडोलता निष्कम्प रही। १५ अब एक चाण्डाल उपस्थित होता है । उसके पास पक्षियों के कुछ पिंजरे हैं। उसने अपने पक्षी भगवान् के हाथ, कान, नासिका, मस्तक, स्कन्ध आदि अवयव पर बिठाये । पक्षियों ने अपनी चोंच और नख से शरीर पर सैकड़ों घाव कर दिये। उन घावों में से रक्त बहने लगा और असह्य वेदना होने लगी। १६ अब भयंकर आँधी खड़ी कर के भगवान् पर धूल और पत्थरों की वर्षा की और भगवान् को उड़ा-उड़ा कर भूमि पर पछाड़ा । १७ कलंकलिका वाय उत्पन्न कर के भगवान को आकाश में उठाया और चक्राकार घमा कर भूमि पर पछाड़ा । १८ बड़े-बड़े पर्वतों को विदारण कर दे ऐसे कालचक्र की विकुर्वणा की जो लोहमय था और अत्यन्त भारी था। उसमें से ज्वालाएँ निकल रही थी। देव ने अत्यन्त क्रोधित हो कर उस कालचक्र का प्रहार भगवान् पर किया, जिससे भगवान् घुटने तक भूमि में धंस गए। परन्तु फिर भी संगम सर्वथा निष्फल ही रहा। १९ जब प्रतिकूल परीषह सभी व्यर्थ हो गए तो संगम हताश हो गया। वह समझ गया कि इन्द्र ने प्रशसा की, वह सर्वथा सत्य थी। अब वह पराजित हो कर इन्द्र को अपना मुँह कैसे दिखावे ? सोचने पर अब उसे अनुकूल उपाय ध्यान में आया। वह देवरूप से विमान में बैठ कर भगवान् के निकट आया और बोला;-- ___ "हे महर्षि ! आपकी साधना सफल है । आपका धैर्य एवं दृढ़ता अडोल है । मैं आपकी साधना से संतुष्ट हूँ। अब आपको कष्ट उठाने की आवश्यकता नहीं है । आपकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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