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संगम के भयानक उपसर्ग
१६३ ..........................................................ध्यानस्थ खड़े देख कर विशेष क्रुद्ध हुआ और घोर दुःख देने वाले आक्रमण करने लगा।
१ सर्वप्रथम उसने जोरदार धूलिवर्षा की--इतनी अधिक कि जिससे भगवान् के सभी अंग ढक गए । नासिका, कान, मुंह आदि सभी में धूल भर गई, जिससे श्वासोच्छ्वास लेना दूभर हो गया। इतना घोर कष्ट होते हुए भी भगवान् तिलमात्र भी विचलित नहीं हुए ओर पर्वत के समान अडोल रहे।
२ प्रथम उपसर्ग में निष्फल होने के बाद संगम ने धूल को दूर कर दी और वज्रमुखो चों टयों की विकुवगा की । वे चीटियाँ अपने वज्रनय मुख से प्रभु के शरीर में छेद कर के घुसी और दूसरी ओर निकल गई। सभी अंगों में इसी प्रकार चींटियों का उपद्रव होने लगा । अंग-छेद और जलन से उत्पन्न घोर दुःख भी भगवान् की अडोलता में अन्तर नहीं ला सके । इसमें भी संगम निष्फल ही रहा ।।
३ अपनी वैक्रिय शक्ति द्वारा संगम ने बड़े-बड़े डाँस छोड़े, जो भगवान् के अंगप्रत्यंग को बिंध कर छेद करने लगे। उन छेदों में से रक्त झरने लगा और असह्य जलन होने लगी। परन्तु भगवान् तो हिमालय के समान अडोल ही रहे । संगम की शक्ति व्यर्थ गई।
__४ अब उसने दीमकों का उपद्रव खड़ा किया। वे सारे शरीर में मुख गढ़ा कर चिपक गई और असह्य वेदना उत्पन्न करने लगी। ज्यों-ज्यों संगम निष्फल होता गया, त्यों-त्यों उसकी उग्रता बढ़ने लगी।
५ अब उसने बिच्छुओं की विकुर्वणा की और भगवान् के शरीर पर चढ़ाये । वे बिच्छु भगवान् के अंग-प्रत्यंग पर वज्र के समान डंक मार-मार कर विष छोड़ने लगे। बिच्छुओं की घोर वेदना, अग्नि के समान असह्य जलन भी उन महावीर प्रभु को चलायमान नहीं कर सकी।
६ अब नकुलों का उपद्रव चलाया। नेवले 'खो खो' शब्द करते हुए भगवान् के शरीर से मांस तोड़-तोड़ कर छिन्न-भिन्न करने लगे. परन्तु भगवान् की अडिगता तो यथावत् रही।
७ बिच्छुओं और नकुलों का उपद्रव निष्फल जाने पर, भयंकर सर्पो की विकुर्वणा की। वे फणीधर विषभ रो फुत्कार करते हुए भगवान् के शरीर पर लिपटने लगे । पाँवों से लगा कर मर तक तक लिपटे और अपनी फणों से अंगों पर जोरदार प्रहार कर दंस देने लगे । अपना समस्त विष भगवान के शरीर में उतार कर उग्रतम वेदना करने लगे, परन्तु वे भी ढीले हो कर रस्सी के समान लटक गए। संगम के वे नाग भी पराजित हो गए,
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