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तीर्थकर चरित्र-भाग ३ प्रककवचकककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककर
__ “गोशालक ! यह तिल का पौधा फलेगा और सात फूलों के जीव मर कर इसकी एक फली में तिल के सात दाने होंगे।"
गोशालक को भगवान् के वचन पर श्रद्धा नहीं हुई। उसके मन में भगवान् को असत्यवादी सिद्ध करने की भावना हुई। वह भगवान् के पीछे चलता हुआ रुका और उस पौधे को मिट्टी सहित मूल से उखाड़ एक ओर फेंक दिया और फिर भगवान के साथ हो लिया। उस समय वहाँ दिव्य-वृष्टि हुई । एक गाय चरती हुई उधर निकली। उसके पाँव के खुर के नीचे आ कर उस उखाड़े हुए तिल के पौधे का मूल गिली मिट्टी में दब गया । मिट्टी और पानी के योग से पौधे का पोषण एवं रक्षण हो गया और वह विकसित हो कर फल युक्त बना । उसकी एक फली में सातों पुष्पों के जीव तिल के सात दाने के रूप में उत्पन्न हुए।
वेशिकायन तपस्वी का आख्यान
चम्पा और राजगृही के मध्य में 'गोबर' नाम का गाँव था। वहाँ ‘गोशंखी'नामक अहीर रहता था। उसकी 'बन्धुमती' स्त्री थी। दम्पति निःसन्तान थे । गोबर गांव के निकट खेटक नाम का छोटा गांव था, जिसे डाकुओं ने लूट कर नष्ट कर दिया था और अनेक लोगों को बन्दो बना लिया था। उस समय वहाँ की 'वेशिका' नामक एक स्त्री के पुत्र का जन्म हुआ था। उसके पति को डाकुओं ने मार डाला और सुन्दर होने के कारण उस सद्य-प्रसूता वेशिका को अपने साथ ले चले । प्रसव से पीड़ित उस बच्चे को उठा कर डाकुओं के साथ शीघ्र चलना कठिन हो रहा था । डाकुओं ने उसे पुत्र के भार को फैक कर शीघ्र चलने का कहा । उसने पुत्र को एक वृक्ष के नीचे रख दिया और चल दी। कालान्तर में डाकुओं ने वेशिका को चम्पापुरी की एक वेश्या को बेच दिया । वह गणिका बन गई।
____ गोशंखी अहोर वन में गया, तो उसे एक वृक्ष के नीचे रोता हुआ वह बच्चा मिला। अपुत्रिये को पुत्र मिल गया। वह प्रसन्नतापूर्वक चुपचाप घर ले आया और पत्नी को दिया। बन्धुमती भी अत्यन्त प्रसन्न हुई । पति-पत्नी ने योजनापूर्वक चाल चली । बन्धुमती प्रसूता बन कर शय्याधीन हो गई । अहीर पुत्रजन्म का उत्सव मनाने लगा और प्रचारित किया कि-'मेरी पत्नी गूढगर्भा थी।" बालक युवावस्था को प्राप्त हुआ। एक बार वह घृत बेचने
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