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तीर्थकर चरित्र-भाग ३
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खिलावे जो बाहर से आया हुआ हो और उसके पाँव धूल से भरे हो । इस उपाय से तेरे जो पुत्र होंगे, वे जीवित रहेंगे । जब वह भिक्षु भोजन कर के चला जाय, तब अपने घर का द्वार तत्काल पलट देना, क्योंकि यदि उसे भोज्य-वस्तु ज्ञात हो जाय और वह क्रोध कर के उसे जलाने आवे, तो उसे तुम्हारा घर नहीं मिले ।
सन्तान की कामना वाली स्त्री यह करने को तत्पर हो गई। उसके मृतक पुत्र जन्मा और उसने उसके रक्त-मांस युक्त खीर पकाई । उस खीर को स्वादिष्ट पदार्थों, सुगन्धित द्रव्यों और केसर आदि के रंग से ऐसी बना दी कि किसी को सन्देह ही नहीं हो और रुचिपूर्वक खा ले । यह वही दिन था, जब गोशालक वहाँ भिक्षा के लिये आया, तो उसे वह खीर मिली । खीर में उसे मांस या रक्त होने की आशंका ही नहीं हुई । स्वादिष्ट खीर उसने भरपेट खाई । वह वहाँ से प्रसन्न होता हुआ लोटा और भगवान् से निवेदन किया" मुझे आज बहुत ही स्वादिष्ट खीर मिली है । मैने भरपेट खाई । उसमें मांस और रक्त था ही नहीं। आपकी भविष्यवाणी आज असत्य हो गई।"
सिद्धार्थ ने कहा--"उस खीर में सद्य-जात मृत बालक के शरीर के बारीक टुकड़े कर के मिलाये हुए हैं।" उसका कारण भी बता दिया गया।
गोशालक ने मुंह में उंगलियाँ डाल कर वमन किया और सूक्ष्मदृष्टि से देखा, तो उसे विश्वास हो गया। वह क्रोधित हुआ और पलट कर उस स्त्री के घर आया। किन्तु खोजने पर भी उसे उसका घर नहीं मिला।
अग्नि से भगवान के पाँव झुलसे वहाँ से विहार कर के प्रभु हरिद्रु नामक गाँव पधारे और गांव के निकट हरिद्रु वृक्ष के नीचे कायोत्सर्ग प्रतिमा धारण कर के रहे। वहाँ एक बड़ा सार्थ भी आ कर ठहरा। रात्रि के सना शोत से बचने के लिये आग जलाई। प्रातःकाल होते ही सार्थ चला गया, परन्तु अग्नि सुलगती ही छोड़ गया । वायु की अनुकूलता पा कर आग फैली । गोशालक तो भयभीत हो कर-“भगवन् ! भागो यहाँ से, नहीं तो जल जाओगे"-चिल्लाता हुआ भाग गया। परन्तु भगवान् पूर्ववत् निश्चल खड़े रहे । आग की झपट से प्रभु के पाँव झुलस का श्याम हो गये + ।
+ कर्म की गति विचित्र हैं। जब परीषह की भीषणता हो, तब रक्षक बना हुआ सिद्धार्थ जाने कहाँ चला जाता है। परन्तु गोशालक को उत्तर देते समय वह सदैव उपस्थित रहता है। उदय अन्यथा नहीं होता-भले ही कतने ही समर्थ रक्षक हों।
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