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________________ गोशालक का अभक्ष्य भक्षण १७५ နံနန်နနနနနနနနန ၀၆၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀ कोई उत्सव मना रहे थे। अनेक स्त्री-पुरुष सपरिवार नृत्य गान और वान्दित्र कर के जागरण कर रहे थे। गोशालक चंचल प्रकृति का तो था ही, झट बोल उठा-"इन पाखण्डियों में सभ्यता भी नहीं है । ये अपनी स्त्रियों को मद्यपान करवा कर नचवाते हैं।" गोशालक की बात सुन कर लोग कोपायमान हुए और घसीट कर उसे मन्दिर के बाहर निकाल दिया। कड़कड़ाती असह्य शीत-वेदना से गोशालक विशेष दुःखी होने लगा, तब उन लोगों ने अनुकम्पा ला कर उसे पुनः देवालय में ले लिया । ठण्ड में कुछ कमी हुई, तो फिर कुछ अनुचित बोल गया और फिर निकाला गया। किसी अनुकम्पाशील व्यक्ति ने दया ला कर पुनः भीतर लिया। इस प्रकार कोप और अनुकम्पा से तीन बार निकाला और फिर भीतर लिया। चौथी बार गोशालक की दुष्टता की उपेक्षा करते हुए एक वृद्ध ने कहा "इस धृष्ट को बकने दो । बाजे कुछ जोर से बजाओ, जिससे इसके शब्द हमारे कानों में ही नहीं पड़े । ये महायोगी ध्यानस्थ खड़े हैं । इनका यह कुशिष्य होगा। हमें इसकी दुष्टता पर ध्यान नहीं देना चाहिये ।" गोशालक का अभक्ष्य भक्षण सूर्योदय पर भगवान् वहाँ से विहार कर के श्रावस्ति नगरी पधारे और नगर के बाहर कायोत्सर्ग कर के रहे । भोजन का समय होने पर गोशालक ने भगवान् से कहा "भगवन् ! अब भिक्षा के लिए चलना चाहिए । शरीर-धारियों के लिये भोजन अति आवश्यक है । इसकी उपेक्षा नहीं होनी चाहिए।" भगवान् की और से सिद्धार्थ बोला "मेरे आज उपवास है।" गोशालक ने पूछा-" बताइये मुझे कैसा आहार मिलेगा ?" सिद्धार्थ ने उत्तर दिया-"आज तुझे मनुष्य के मांस की भिक्षा मिलेगी।" गोशालक ने कहा-" जिस घर में से मांस की गन्ध भी आती होगी, उस घर में मैं जाऊँगा ही नहीं।" गोशालक भिक्षा के लिये नगरी में गया। इस नगरी में पितृदत्त नामक गृहस्थ रहता था। श्रीभद्रा उसकी पत्नी थी। उसके गर्भ से मरे हुए पुत्र जन्म लेते थे। शिवदत्त नामक नैमेत्तिक को उपाय पूछने पर उसने कहा था-"तू अपने मृतक पुत्र के रक्त और मांस को घृत, दूध और मधु में मिला कर खीर बनावे और उस खीर को ऐसे भिक्षु को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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