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________________ १७४ क तीर्थंकर चरित्र - भाग ३ In Feep जासूसों के बन्धन में sepas***** कुमार ग्राम से विहार कर के भगवान् चोराक सन्निवेश पधारे और ध्यानस्थ हो गए । वहाँ अन्य राज्य के भेदियों (जासूसों) का भय लगा ही रहता था । आरक्षक लोग, अपरिचित व्यक्ति को सन्देह की दृष्टि से देखते थे । भगवान् को देखते ही आरक्षकों ने पूछा - " तुम कौन हो ? ध्यानस्थ होने के कारण प्रभु बोले नहीं । अपरिचित आरक्षक का सन्देह दृढ़ हुआ । वह भगवान् और गोशालक को बाँध कर पीटने लगा। इतना ही नहीं, उन्हें कुए में डाल कर डुबोने लगा । भगवान् तो अडिग थे । गोशालक ने अपनी निर्दोषिता बताई, तो उस पर आरक्षकों ने ध्यान नहीं दिया । 66 उस गाँव में उत्पल नामक निमितज्ञ की बहिनें - सोमा और जयंती रहती थी। वे भगवान् पार्श्वनाथजी की पड़वाई साध्विये थी । उपरोक्त घटना सुन कर उन्हें भ० महावीर के होने का सन्देह हुआ । वे घटनास्थल पर पहुँची और भगवान् को पहिचान कर बोली'अरे मूर्खों ! यह क्या अनर्थ कर रहे हो ? ये सिद्धार्थ नरेश के सुपुत्र महावीर प्रभु हैं । ये निर्ग्रथ प्रव्रज्या धारण कर के साधना कर रहे हैं । ये नरेन्द्रों और देवेन्द्रों के भी पूज्य हैं। इनकी मन से आशातना करना भी अपनी आत्मा का अधःपतन करना है । तुम अज्ञानी लोग अपनी महान् हानि को भी नहीं सोचते हो ? " साध्वी के वचन सुन कर आरक्षक सहमे । तत्काल भगवान् को बन्धन मुक्त किये और बारम्बार क्षमा याचना करने लगे । चोराक से विहार कर के भगवान् पृष्टचम्पा पधारे और चौथा चातुर्मास वहीं व्यतीत किया । इस चातुर्मास के चार महीने भगवान् चातुर्मासिक तप पूर्वक विविध प्रकार की प्रतिमा धारण कर के रहे । चातुर्मास पूर्ण होने पर विहार किया और अन्यत्र जा कर पारणा किया। Jain Education International गोशालक की अयोग्यता प्रकट हुई पृष्टचम्पा से भगवान् कृतमंगल नगर पधारे। उस नगर में 'दरिद्र स्थविर 'नामक पाखण्डियों का एक विशाल मन्दिर था । उसमें उनके कुलदेव की प्रतिमा थी। उस देवालय के एक कोने में भगवान् कायोत्सर्ग से खड़े हो गए । माघ मास की कड़कड़ाती ठण्ड असह्य एवं अति दुःखदायक लग रही थी। उसी रात को उस मन्दिर में उसके उपासक For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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