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________________ भ. महावीर तापस के आश्रम में अपितु ठंडे छायायुक्त स्थान में रह कर शीतवेदना को विशेष सहन करते और उष्णकाल में धूप में रह कर आतापना लेते । तपस्या के पारणे में आठ महीने तक भगवान् ने रूखा भात, बोर का चूर्ण और उड़द के बाकले ही लिये और वे भी ठंडे । भगवान् की तपस्या इतनी उग्र होती थी कि पन्द्रह-पन्द्रह दिन महीने, दो-दो महीने और छह-छह महीने तक पानी भी नहीं पीते थे। भगवान् स्वयं पाप नहीं करते थे, न दूसरों से करवाते थे और न पाप का अनुमोदन ही करते थे। भगवान् भिक्षा के लिये जाते तो दूसरों के लिये बनाये हुए आहार में से ही अपने अभिग्रह के अनुसार निर्दोष आहार लेते और मन वचन और काया के योगों को संयत कर के खाते थे। भिक्षार्थ जाते मार्ग में कौआ, कबूतर, तोता आदि भूखे पक्षी दाने चुगते हुए दिखाई देते, अथवा कोई श्रमण, ब्राह्मण, भिक्षुक, अतिथि, चांडाल, कुत्ता, बिल्ली आदि को भिक्षा पाने की इच्छा से खड़े देखते, तो उन्हें किसी प्रकार की बाधा नहीं हो, अन्तराय नहीं हो, किसी प्रकार का कष्ट नहीं हो और किसी सूक्ष्म जीव की भी बाधा नहीं हो, इस प्रकार भगवान् धीरे से निकल जाते या अन्यत्र चले जाते। सूखा हो या गीला, भीगा हुआ, ठंडा, पुराने धान्य का (निस्सार) जो आदि का पकाया हुआ निरस आहार, जैसा भी हो भगवान् शान्तभाव से कर लेते । यदि कुछ भी नहीं मिलता तो भी शान्ति पूर्वक उत्कट गोदोहासनादि से स्थिर हो कर ध्यानस्थ हो कर, ऊर्ध्व, अधो और तिर्यक् लोक के स्वरूप का चिन्तन करते ।। भगवान् कषाय-रहित, आसक्ति-रहित और शब्द-रूपादि विषयों में प्रीति नहीं रखते हुए सदैव शुभ ध्यान में लीन रहते थे। संयम में लीन रहते हुए भगवान् निदान नहीं करते । इस प्रकार की विधि का भगवान् ने अनेक बार पालन किया * । भ० महावीर तापस के आश्रम में यह वर्णन अनार्यदेश में विचरने के पूर्व का है और त्रि.श. पु.च.से लिया जा रहा है। किसी समय विचरते हुए भगवान् मोराक सन्निवेश पधारे । वहाँ दुइज्जंतक जाति के तापस रहते थे। उन तपस्त्रियों के कुलपति, प्रभु के पिता स्व. श्री सिद्धार्थ नरेश के * यहाँ तक का वर्णन आचारांग सूत्र श्रुः १ अ. ९ के आधार से लिखा हैं । आगे त्रि. श. पु. च. आदि के आधार से लिखा जावेगा। - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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