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________________ १३८ किकककककककककककच तीर्थङ्कर चरित्र - भाग ३ sesso 1 pea possess घोषणा की कि - " जब से यह बालक गर्भ में आया, तब से धन धान्य, ऋद्धि-सम्पत्ति, यश, वैभव एवं राज्य में वृद्धि होती रही है। राज्य के सामन्त और अन्य राजागंण हमारे वशीभूत हो कर आधीन हुए हैं । इसलिए पुत्र का गुण - निष्पन्न नाम " वर्द्धमान' रखते हैं।" इस प्रकार नामकरण कर के सभी आमन्त्रितजनों को आदर सहित बिदा करते हैं । भगवान् महावीर काश्यप गोत्रीय थे और उनके तीन नाम थे । यथा-१- मातापिता का दिया नाम -- " वर्द्धमान, " २ - त्याग तप की विशिष्ट साधना से प्रभावित हो कर दिया हुआ नाम श्रमण, " और ३ मा भयानक परीषह - उपसर्गों को धैर्यपूर्वक सहन करने के कारण देत्रों ने " 'श्रमण भगवान् महावीर" नाम दिया। (2 27 भगवान् के पिता के तीन नाम थे-- १ सिद्धार्थ २ श्रेयांश और ३ यशस्वी । भगवान् की माता वशिष्ठ गोत्री थी। उनके तीन नाम थे यथा -- १ त्रिशला २ विदेहदिन्ना और ३ प्रियकारिणी । भगवान् के काका सुपार्श्व, ज्येष्ठ भ्राता नन्दीवर्धन, बड़ी बहिन सुदर्शना, ये सब काश्यपगोत्रीय थे और पत्नी यशोदा कौडिन्य गोत्र की थी । भगवान् महावीर की पुत्री काश्यप गोत्र की थी । उसके दो नाम थे--अनवद्या और प्रियदर्शना । भगवान् महावीर की दोहित्री काश्यप गोत्र की थी । उसके दो नाम थे-- शेषवती और यशोमती । भगवान् महावीर के माता-पिता भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा के श्रमणोपासक थे । Jain Education International बालक महावीर से देव पराजित हुआ जब महावीर आठ वर्ष से कुछ कम वय के थे, अपने समवयस्क राजपुत्रों के साथ क्रीड़ा करते हुए उद्यान में गये और 'संकुली' नामक खेल खेलने लगे । उधर शक्रेन्द्र ने देव-सभा में कहा कि - " अभी भरतक्षेत्र में बालक महावीर ऐसे धीर वीर और साहसी है कि कोई देव-दानव भी उन्हें पराजित नहीं कर सकता।" इन्द्र की बात का और तो सभी देवों ने आदर किया, परन्तु एक देव ने विश्वास नहीं किया । वह परीक्षा करने के लिये चला और उद्यान में जा पहुँचा । उस समय बालकों में वृक्ष को स्पर्श करने की होड़ लगी हुई थी । देव ने भयानक सर्प का रूप बनाया और उस वृक्ष के तने पर लिपट गया । फिर फन फैला कर फुत्कार करने लगा। एक भयानक विषधर को आक्रमण करने में तत्पर देख कर, डर के मारे अन्य सभी बालक भाग गये । महावीर तो जन्मजात निर्भय थे । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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