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________________ भगवान महावीर का जन्म j2 ®s e3 « ®®®®®®®» » १३७ सुला दिया और माता की अवस्वापिनी निद्रा दूर की । देवेन्द्र ने प्रभु के सिरहाने क्षोमवस्त्र और युगलकुंडल रखा और वन्दन कर के चला गया । देवों और इन्द्रों द्वारा जन्मोत्सव होने के बाद प्रातःकाल होने पर सिद्धार्थ नरेश ने पुत्र जन्म के आनन्दोल्लास में महारानी की मुख्य सेविका को मुकुट छोड़ कर सभी आभूषण प्रदान कर पुरस्कृत किया और साथ ही दासत्व से भी मुक्त कर दिया । तत्पश्चात् विश्वस्त कर्मचारियों द्वारा नगर को सुसज्जित करने और स्थान-स्थान पर गायन-वादन एवं नृत्य कर के उत्सव मनाने की आज्ञा दी । कारागृह के द्वार खोल कर बन्दियों को मुक्त कर दिया गया । व्यवसाय में व्यापारियों को तोल-नाप बढ़ाने के निर्देश दिये गये । मनुष्यों के मनोरंजन के लिए विविध प्रकार के नाटक, खेल, भाँडों की हास्यवर्द्धक चेष्टाएँ और बातें और कत्थकों एवं कहानीकारों की कथा कहानियों का आयोजन कर के जनता के मनोरंजन के अनेक प्रकार के आयोजन किये गये। इस महोत्सव पर पशुओं को भी परिश्रम करने से मुक्त रख कर, सुखपूर्वक रखने के लिये हल बक्खर एवं गाड़े आदि के जूए से बैलों को खोल दिया गया। उन्हें भारवहन करने से मुक्त रखा गया। मजदूर वर्ग को सवैतनिक अवकाश दिया गया। महाराजा ने जन्मोत्सव के समय प्रजा को कर मुक्त कर दिया। किसी प्रकार का कर नहीं लेने और अभावग्रस्तजनों को आवश्यक वस्तु बिना मूल्य देने की घोषणा की । किसी ऋगदाता से, राज्य सत्ता के बल से बरबस ( जब्ती - कुर्की आदि से ) धन प्राप्त करना स्थगित कर दिया। किसी प्रकार के अपराध अथवा ऋण प्राप्त करने के लिये, राज्यकर्मचारियों का किसी के घर में घुसने का निषेध कर दिया और किसी को दण्डित करने की भी मनाई कर दी। इस प्रकार दस दिन तक जन्मोत्सव मनाया गया । उत्सव के चलते सिद्धार्थ नरेश, हजारों-लाखों प्रकार के दान, देवपूजा, पुरस्कार आदि देते-दिलाते रहे और सामन्त आदि से भेंटें स्वीकार करते रहे । Jain Education International कककब भगवान् महावीर के माता-पिता ने प्रथम दिन कुल परम्परानुसार करने योग्य अनुष्ठान किया । तीसरे दिन पुत्र को चन्द्र-सूर्य के दर्शन कराये । छठे दिन रात्रि जागरण किया। ग्यारह दिन व्यतीत होने पर अशुचि का निवारण किया । बारहवें दिन विविध प्रकार का भोजन बनवा कर मित्र ज्ञाति स्वजन - परिजन और ज्ञातृवश के क्षत्रियों को आमन्त्रित कर भोजन करवाया । उनका यथायोग्य पुष्प - वस्त्र - माला-अलंकार से सत्कार-सम्मान किया। इसके बाद * तोल-नाप बढ़ाने का अर्थ यह है कि ग्राहक जो वस्तु जितने परिमाण में माँगें, उसे उतने ही मूल्य में ड्योढ़ी- दुगुनी वस्तु दी जाय । इसका शेष मूल्य राज्य की ओर से चुकाया जाता था । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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