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तीर्थकर चरित्र-भाग ३ ..............................................................
-"पुत्रों ! तुम अभी बच्चे हो । तुम्हें कार्याकार्य और फलाफल का ज्ञान नहीं है । तुमने बिना विचारे जो अकार्य कर डाला, उसी से यह विपत्ति आई । अब आगे तुम क्या कर बैठो और उसका क्या परिणाम निकले ? अतएव तुम यही रहो और शाति से रहो । मैं स्वयं सिंह से भिड़ने जाता हूँ।"
पिताजी ! अश्वग्रीव मूर्ख है । वह ६च्चों को भूत से डराने के समान हमे सिह से डराता है । आप प्रसन्नतापूर्वक आज्ञा दीजिए । हम शीघ्र ही सिंह को मार कर आपके चरणों में उपस्थित होंगे।"
__बड़ी कठिनाई से पिता की आज्ञा प्राप्त कर के अचल और त्रिपृष्ठ कुमार थोड़े से सेवकों के साथ उपद्रव-ग्रस्त क्षेत्र में आये। उन्हें वहाँ सैनिकों की अस्थियों के ढेर के ढेर देख कर आश्चर्य हुआ। ये सब बिचारे सिंह की विकरालता की भेंट चढ़ चुके थे।
सिंह-घात कुमारों ने इधर-उधर देखा, तो उन्हें कोई भी मनुष्य दिखाई नहीं दिया। जब उन्होंने वृक्षों पर देखा, तो उन्हें कहीं-कहीं कोई मनुष्य दिखाई दिया। उन्होंने उन्हें निकट बुला कर पूछा--
--" यहाँ रक्षा करने के लिए आये हुए राजा लोग, किस प्रकार सिंह से इस क्षेत्र की रक्षा करते हैं ?"
- वे अपने हाथी, घोड़े रथ और सुभटों का व्यूह बनाते हैं और अपने को व्यूह में सुरक्षित कर लेते हैं । जब विकराल सिह आता है, तो वह व्यूह के सैनिक आदि को मार कर फाड़ डालता है और खा कर लौट जाता है । इस प्रकार उस विकराल सिंह से राजाओं को और हमारी रक्षा तो हो जाती है. किन्तु सैनिक और घोड़े आदि मारे जाते हैं । हम कृषक हैं। वृक्षों पर चढ़ कर यह सब देखते रहते हैं "-उनमें से एक बोला।
दोनों कुमार यह सुन कर प्रसन्न हुए। उन्होंने अपनी सेना को तो वहीं रहने दिया और दोनों भाई रथ पर सवार हो कर सिंह की गुफा की ओर चले । रथ के चलने से उत्पन्न ध्वनि से वन गुंज उठा। वह अश्रुतपूर्व ध्वनि सुन कर सिंह चौंका। वह अपनी तीक्ष्ण दृष्टि से इधर-उधर देखने लगा। उसकी गर्दन तन गई और केशावलि के बाल चवर के समान इधर-उधर हो गए। उसने उबासी लेने के लिए मुंह खोला । वह मुंह मृत्यु के मुंह के समान भयंकर था। उसने इधर-उधर देखा और रथ की उपेक्षा करता हुआ पुनः लेट गया। सिंह की उपेक्षा देख कर अचलकुमार ने कहा
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