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तीर्थंकर चरित्र-भा. ३ कककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककबायकवयवयायककक
तब से सांख्य मत पृथ्वी पर चल रहा है । सुख-साध्य अनुष्ठानों में लोगों की रुचि अधिक ही होती है।
___ मरीचि का जीव ब्रह्म देवलोक से च्यव कर कोल्लाक ग्राम में कौशिक रामक ब्राह्मण हुआ। उसकी आयु अस्सी लाख पूर्व की थी। वह लोभी, विषयासक्त और हिसादि पापों में बहुत काल लगा रहा । अन्त में त्रिदंडी हुआ और मृत्य पा कर भव-भ्रमण करता रहा । फिर स्थुणा ग्राम में 'पुष्पमित्र' नाम का ब्राह्मण हुआ। वहाँ भी वह त्रिदडा हुआ और बहत्तर लाख पूर्व का आयु पूर्ण कर के सौधर्म देवलोक में मध्यम स्थिति का देव हुआ । वहाँ से च्यव कर चैत्य नामक स्थान में 'अग्न्युद्योत' नाम का ब्राह्मण हुआ ! उसकी आयु चौंसठ लाख पूर्व की थी। वहां भी वह त्रिदंडी हुआ । मृत्यु पा कर ईशान देवलोक में मध्यम स्थिति का देव हुआ। वहाँ से च्यव क र मन्दिर नाम के सन्निवेश में छप्पन लाख पूर्व की आयु वाला ‘अग्निभूति' ब्राह्मण हुआ। वहाँ भी त्रिदंडी बना । आयु पूर्ण कर सनत्कुमार देवलोक में मध्यम स्थिति का देव हुआ। वहाँ से मर कर श्वेताम्बिका नगरी में भारद्वाज' नाम का विप्र हुआ। वहाँ भी त्रिदंडी दीक्षा ली और चवालीस लाख पूर्व का आयु पूर्ण कर माहेन्द्र कल्प में मध्यम स्थिति का देव हुआ। वहाँ से च्यव कर भव-भ्रमण करता हुआ राजगृही में 'स्थावर' नाम का ब्राह्मण हुआ। त्रिदंडी प्रव्रज्या ग्रहण की और चौंतीस लाख पूर्व का आयु भोग कर ब्रह्म देवलोक में मध्यम स्थिति का देव हुआ । वहां से च्यव कर अन्य बहुत भव किये ।
त्रिपृष्ट वासुदेव भव
महाविदेह क्षेत्र में 'पुंडरीकिनी' नगरी थी। सुबल नाम का राजा वहाँ राज करता था। उसने वैराग्य प्राप्त कर 'मुनिवृषभ' नाम के आचार्य के पास दीक्षा ग्रहण की और संयम तथा तप का अप्रमत्तपने उत्कृष्ट रूप से पालन करते हुए काल कर के अनुत्तर विमान में देवपने उत्पन्न हुए ।
___भरत-क्षेत्र के राजगह नगर में 'विश्वनंदी' नाम का राजा था। उसकी प्रियंग' नाम की पत्नी से 'विशाखनन्दी' नाम का पुत्र हुआ। विश्वनन्दी राजा के 'विशाखभूति' नाम का छोटा भाई था। वह 'युवराज' पद का धारक था । वह बड़ा बुद्धिमान्, बलवान् नीतिवान् और न्यायी था, साथ ही विनीत भी। विशाखभूति की 'धारिणी' नाम की रानी
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