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________________ तीर्थंकर चरित्र भविष्यवाणी को सरलतापूर्वक असत्य बना दूंगा । इसमें जनक और दशरथ को मार डालते से ही समस्या हल हो सकेगी । जब ये दोनों राजा नहीं रहेंगे, तो पुत्र और पुत्री होंगे ही नहीं और वैसा निमित बनेगा ही नहीं। उपादान रूपी मृत्यु को तो नहीं टाला जा सकता किन्तु निमित्त को तो टाला या परिवर्तित किया जा सकता है । मैं यही करना चाहता हूँ।" रावण ने विभीषण को आज्ञा दे दी। विभीषण सभा में से उठ कर चला गया । उस सभा में नारदजी भी उपस्थित थे। उन्होने विभीषण की योजना सुनी। वे सभा में से निकल कर सीधे दशरथ नरेश के पास पहुँचे । नारदजी को आते देख कर दशरथ नरेश आसन छोड़ कर खड़े हुए, सामने गये, नमस्कार किया और सम्मानपूर्वक उनको उच्चासन पर बिठाया । कुशल समाचार पूछने के पश्चात् नरेश ने नारदजी से पदार्पण का प्रयोजन पूछा । उन्होंने कहा “राजन् ! मैं सीमन्धर स्वामी का निष्क्रमण उत्सव देखने के लिए पूर्वविदेह की पुण्डरीकिणी नगरी में गया था। वहां से लौटते हुए लंका में रावण की सभा में गया। एक भविष्यवेत्ता ने रावण को बताया कि-'तुम्हारी मृत्यु जनक की पुत्री के निमित्त से दशरथ के पुत्र द्वारा होगी।' इस भविष्य कथन को सुन कर विभीषण तुम्हें और जनक को मारने को तत्पर हुआ है । वह शीघ्र ही सेना ले कर आएगा। तुम सावधान होओ। अब मैं जनक को सावधान करने के लिए मिथिला जाता हूँ।" । नारदजी चले गए । दशरथ ने मन्त्रियों से परामर्श किया और विभीषण से बचने के लिए गुप्त रूप से राजधानी छोड़ कर निकल गए । मन्त्रियों ने शत्रु को छलने के लिए दशरथ नरेश की लेप्यमय प्रतिमा बना कर राजभवन के अन्धेरे कक्ष में, शय्या में सुला दी और उन्हें असाध्य रोग के रोगी प्रसिद्ध कर दिया। वैद्यों को खरल ले कर औषधी तव्यार करने बैठा दिया । आसपास का वातावरण भी उदासीनता पूर्ण हो गया। नगर में राजा को भयंकर व्याधि की बात फैल गई। आसपास के गाँवों में भी वैसा प्रचार और उदासीनता व्याप्त हो गई । मन्त्रियों ने विश्वस्त दूत भेज कर जनक नरेश को भी वैसा उपाय करने का परामर्श दिया। विभीषण सेना ले कर पहले दशरथ नरेश के राज्य में आया। राज्य में प्रवेश करते ही उसके जासूसों ने सूचना दी कि 'दशरथ भीषण दशा में रोगशय्या पर मच्छित है। राज्यभर में उदासीनता और भावी अनिष्ट की आशंका छा गई है।' विभीषण यह सुन कर प्रसन्न हुआ। उसने सोचा-'बिना युद्ध के ही कार्य सिद्धि हो जायगी।' वह सेना को नगर के बाहर छोड़ कर, कुछ योद्धाओं के साथ राजभवन में आया। मन्त्रियों ने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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