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तीर्थकर चरित्र
के मुहाने पहुंची, तो उन्हें एक ध्यानस्थ मुनिराज दिखाई दिये । ऋषिश्वर के दर्शन से उनके मन में संतोष हुआ। महात्माजी को नमस्कार कर के वे उनके सामने बैठ गई मुनिराज ने ध्यान पूर्ण किया। वसंतमाला ने विनयपूर्वक अंजना का परिचय दे कर उसकी विपत्ति की कहानी सुनाई और बोली;--
"महात्मन् ! इसके गर्भ में कैसा जीव है ? किस पाप के उदय से यह दुर्दशा हुई और भविष्य में क्या फल भोगना पड़ेगा ? यदि आप ज्ञानी है, तो बतलाने की कृपा करें।"
हनुमान का पूर्वभव
महर्षि श्री अमितगतिजी ने अंजना के वर्तमान दुःख का कारण बताते हुए कहा
"इस भरतक्षेत्र मंदिर के नगर में प्रियनन्दी नाम का एक व्यापारी रहता था। उसकी जया नामकी पत्नी से दमयंत नामका पुत्र था। वह रूप-सम्पन्न और सयमप्रिय था । एक बार वह क्रीड़ा के निमित्त उद्यान में गया। वहाँ एक मुनिराज ध्यान में मग्न थे। दमयंत ने मुनिश्वर को वन्दना की और बैठ गया। ध्यान पूर्ण होने पर मुनिराज ने दमयंत को धर्मोपदेश दिया । दमयंत उस उपदेश से प्रभावित हो कर, सम्यक्त्व और विविध प्रकार के व्रत ग्रहण किये और धर्म में अत्यंत रुचि रखता हुआ और सुपात्र-दानादि देता हुआ काल के दसरे स्वर्ग में मद्धिक देव हआ। देवभव पूर्ण कर मगांकपुर के राजा वीरचंद्र की प्रियंगुलक्ष्मी रानी के गर्भ से पुत्रपने उत्पन्न हुआ। उसका नाम सिंहचन्द्र था। वह वहां भी जैनधर्म प्राप्त कर यथाकाल मृत्यु पा कर देव हुआ । देवभव पूर्ण कर वैताढ्य पर्वत पर वरुण नगर के राजा सुकंठ की रानी कनकोदरी का पुत्र सिंहवाहन हुआ। चिरकाल तक राज करने के बाद श्रीविमलनाथ भगवान् के तीर्थ के श्री लक्ष्मीधर मुनि के पास सर्व-विरति स्वीकार की और तप-संयम का निष्ठापूर्वक पालन कर के लांतक देवलोक में देव हुआ और वहां का आयु पूर्ण कर वह जीव, इस अंजनासुन्दरी के गर्भ में आया है । यह जीव गुणों का भंडार, महापराक्रमी, विद्याधरों का अधिपति, चरमशरीरी और स्वच्छ हृदयी होगा।"
अंजनासुन्दरी का पूर्वभव
ऋषिश्वर ने आगे कहा--"अब अंजनासुन्दरी का पूर्वभव कहता हूँ;--
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