SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 650
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सुदर्शन सेठ की धर्मचर्चा और प्रतिबोध ားပို peppe चाहते हैं । जो कोई इनके साथ भगवान् के पास दीक्षित होना चाहें, उन्हें श्रीकृष्ण अनुज्ञा देते हैं । उनके पीछे रहे हुए उनके मित्र, ज्ञाति, सम्बन्धी एवं परिजन का पालन-पोषण एवं रक्षण करने का भार राज्य ग्रहण करेगा ।" 66 इस प्रकार उद्घोषणा कर के मुझे निवेदन करो ।” थावच्चापुत्र के प्रति अनुराग के कारण उनके साथ एक हजार व्यक्ति दीक्षित होने के लिए तत्पर हो कर अपने-अपने घर से, स्वजन- परिजन के साथ शिविका में बैठ कर, थावच्चापुत्र के भवन पर आये । श्रीकृष्ण की आज्ञा से भव्य समारोहपूर्वक दीक्षा महोत्सव प्रारम्भ हुआ । थावच्चापुत्र शिविकारूढ़ हो कर एक हजार मित्रों के साथ चलता है । भगवान् के छत्र-चामरादि देख कर शिविका से उतरता है और सभी के साथ चलता है । श्रीकृष्ण - वासुदेव, थावच्चापुत्र को आगे कर के चलते हैं। थावच्चापुत्र और सभी विरक्तजन भगवान् की वन्दना कर के ईशान कोण में जाते हैं और अलंकारादि उतार कर श्रमणवेश में उपस्थित होते हैं । थावच्चापुत्र की म ता, पुत्र-विरह से उत्पन्न शोक से रुदन करती एवं आँसू गिराती है और पुत्र को शुद्धतापूर्वक संयम का पालन कर, विमुक्त होने की सीख देती हुई घर लौट आती है । थावच्चापुत्र और उनके साथ के एक हजार पुरुष भगवान् से प्रव्रज्या ग्रहण करते हैं और संयम और तप से आत्म-साधना एवं ज्ञानाभ्यास करते हुए विचरते हैं । थावच्चापुत्र अनगार ने स्थविर महात्माओं के पास सामायिक से लगा कर चौदह पूर्व तक के श्रुत का अभ्यास किया । उसके बाद भगवान् नेमिनाथ ने उनके साथ दीक्षित हुए एक हजार श्रमणों को उन्हें शिष्य के रूप में प्रदान किये । कालान्तर में थावच्चापुत्र अनगार ने भगवान् को वन्दन- नमस्कार कर के अपने एक हजार शिष्यों के साथ जनपद में विहार करने की आज्ञा प्राप्त को और पृथक् जनपद-विहार करने लगे । थावच्चापुत्र अनगार अपने शिष्यों के साथ शैलकपुर नगर के उद्यान में पधारे । शैलक नरेश और उनके पंथक आदि पाँच सौ मन्त्री और नागरिकगण दर्शनार्थ आये । धर्मोपदेश सुन कर शैलक नरेश प्रतिबोध पाये और अपने पांच सौ मन्त्री सहित श्रमणोपासक के व्रत अंगीकार किये । ६३७ Jain Education International सुदर्शन सेठ की धर्मचर्चा और प्रतिबोध सौगन्धिका नाम की नगरी थी। एस नगरी में 'सुदर्शन' नाम का नगरश्रेष्ठी रहता था । वह बड़ा ऋद्धिमंत और शक्तिशाली था । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy