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________________ ५२ तीर्थकर चरित्र यह त्रिशूल वही है।" राजकुमार मधु की भक्ति एवं शक्ति देख कर रावण प्रसन्न हुआ और अपनी मनोरमा नाम की पुत्री राजकुमार को ब्याह दी। नलकूबर का पराभव पराक्रमी नरेश इन्द्र * का लोकपाल 'नलकूबर' दुर्लध्यपुर में राज करता था। रावण की आज्ञा से कुंभकर्ण आदि ने सेना ले कर उस पर चढ़ाई कर दी। नलकूबर ने आशाली विद्या के प्रयोग से नगर के चारों ओर सौ योजन पर्यन्त अग्निमय कोट खड़ा कर दिया और उसमें ऐसे अग्निमय यन्त्रों की रचना की कि जिनमें से निकलते हुए स्फुलिंग आकाश में छा जाते हैं और ऐसा लगे कि जिससे आकाश प्रज्वलित होने वाला हो । इस अग्निमय प्रकोष्ट में अपनी सेना सहित नलकबर, निर्भय हो कर रहता था और विभीषण पर क्रोधातुर हो रहा था । कुंभकर्ण आदि ने जब अग्नि का किला देखा, तो चकित रह गए। उनकी किले पर दृष्टि जमाना भी दुभर हो गया। उन्होंने विचार किया--'यह किला दुर्लध्य है । हम इसे जीत नहीं सकते। वे हताश हो कर पीछे हट गए और रावण को आग के किले के कारण उत्पन्न बाधा से अवगत कराया। रावण तुरन्त वहाँ पहुँचा और स्थिति देख कर स्वयं स्तंभित रह गया । वह सेनापतियों के साथ विचार-विमर्श कर के उपाय खोजने लगा । वे इसी चिन्ता में थे कि रावण के पास एक स्त्री आई। उसने कहा-- "मैं नलकूबर की रानी उपरंभा का सन्देश लाई हूँ। वह आप पर पूर्णरूप से मुग्ध है और आपके साथ रति-क्रीड़ा करना चाहती है। यदि आप उसकी अभिलाषा पूर्ण करेंगे, तो वह आपको आशाली विद्या देगी, जिससे आप इस अग्निकोट को शान्त कर के नलकूबर पर विजय प्राप्त कर सकेंगे। इसके सिवाय यहां 'सुदर्शन' नाम का एक चक्र-आयुध है, वह भी आपको प्राप्त हो जायगा।" दूती की बात सुन कर रावण ने विभीषण की ओर देखा । विभीषण ने 'एवमस्तु' कह कर दासी को रवाना कर दी। विभीषण की स्वीकृति रावण को अरुचिकर लगी। उसने क्रोधपूर्वक कहा: "तुमने स्वीकार क्यों किया? अपने कुल में किसी भी पुरुष ने रणभूमि में शत्रुओं को पीठ और परस्त्री को हृदय कभी नहीं दिया । तुमने स्वीकृति दे कर अपने उज्ज्वल . .इसका वर्णन पृष्ठ २४ पर देखें । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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