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महारानियों की दीक्षा और पुत्रियों को प्रेरणा
भगवान् का उपदेश एवं द्वारिका का भविष्य सुन कर, महाराजाधिराज श्रीकृष्ण की बाठों पटरानियां बोर बन्य रानियां, पुत्र-वधुएं और राजकुमार तथा नामरिकजन, संसार से विरक्त हो कर पक्वान् के पास दीक्षित हुए । श्रीकृष्ण ने राजकुमारियों को बुला कर पूछा;
“तुम्हें स्वामिनी बनना है या सेविका ?" राजकुमारियों ने कहा-"हम स्वामिनी होना चाहती हैं, सेविका नहीं।"
"यदि तुम स्वामिनी होना चाहती हो, तो तुम्हारी माताओं के समान भगवान् नेमिनाथ के समीप प्रवन्या ग्रहण कर के जात्म-कल्याण करो। तुम हम सभी की पूज्य बन जाबोगी। स्वामिनी बनने का एक यही उपाय है कौर नो संसार में रहेगी, वे सेविका बनेगी। क्योंकि वे जिसके साथ विवाह करेगी, वे सभी मेरे सेवक हैं । सेवक की पत्नी बनना तो सेविका बनना ही है।"
श्रीकृष्ण की बात सुन कर अनेक राजकुमारियों के प. नेमिनाथ के पास प्रवज्या ग्रहण की और धर्पसाधना करने लगी। बिन नापरिकों ने प्रसन्या ग्रहण को, उन सबका निष्क्रमण-महोत्सव श्री कलमजी ने किया और उनके पीछे रहे हए वृद्ध माता-पिता, रोगी, बालक-बालिका और परिवार का पालन-पोषण-रक्षण और साल-संभाल श्रीकृष्ण ने राज्य की ओर से करने की व्यवस्थाको।
प्रव्रज्या की ओर मोड़ने का प्रयास
ममवान् के उपदेश और श्रीकृष्ण को प्रेरणा प्रोत्साहन से सभी पटरानियाँ, अन्य अनेक रानियाँ, बहुरानियां और गर कुमारियां दीक्षित हुई, फिर भी उदयथाव की प्रबलता से कई रानियां और राजकुमारियां रही थी। एक रानी को अपनी पुत्री केतुम जरी को दीक्षा दिलाना स्वीकार नहीं हुआ। पुकी बुवावस्था प्राप्त कर चुकी थी। माता ने पुत्री को सिखाया-"तुझे तेरे पिताजी पूर्छये कि स्वामिनी बनना है या सेविका?" तो तु कहना-"मुझे सेविका बनना है. स्वामिनी नहीं।" केतुपंबरी फिता के चरण-वन्दन करने गई। श्रीकृष्ण ने उससे उपरोक्त प्रश्न पूछा, तो उसने माता का बताया हुआ उत्तर दिया-"मुझे सेविका बनना है।"पुत्री के उत्तर से श्रीकृष्ण विचार-मग्न हो गए। उन्होंने सोचा-"ऐसा उपाय करना चाहिये कि जिस से दूसरी पुत्रियों को शिक्षा मिले और के
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