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श्रीकृष्ण की उद्घोषणा
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ऋषि के निमित से, आग लग कर द्वारिका प्रज्वलित हो कर नष्ट होने लगेगी, तब मातापिता और समस्त परिवार से वंचित हो कर तुम और बलदेवजी, युधिष्ठिरादि पाण्डवों के पास, पाण्डु-मथुरा की ओर जाओगे । मार्ग में काशाम्र वन में एक वट-वृक्ष के नीचे शिलापट्ट पर तुम सोओगे । तुम्हारा शरीर पिताम्बर से ढका होगा। उस समय तुम्हारे भाई जराकुमार द्वारा, मृग के आभास से फेंके हुए बाण से तुम आहत हो कर मृत्यु पाओगे और बालुकाप्रभा नामक तीसरी पृथ्वी में उत्पन्न होओग।"
यह भविष्य-कथन सुन कर उन्हें चिन्ता एवं आर्तध्यान उत्पन्न हो गया । तब भगवान् ने कहा--
"कृष्ण ! चिन्ता मत करो । तीसरी पृथ्वी से निकल कर तुम मनुष्य होंगे और आगामी चौबीसी में शतद्वार नगर में 'अमम' नाम के बारहवें तीर्थंकर बनोगे।"
श्रीकृष्ण को इस भविष्य-कथन से अत्यन्त प्रसन्नता हुई। हर्षातिरेक से वे जोर-जोर से बोलते हुए अपनी भुजा ठोकने लगे और सिंहनाद किया। इसके बाद भगवान् की वन्दना कर के अपने भवन में आये।
श्रीकृष्ण की उद्घोषणा
श्रीकृष्ण ने सेवकों को आदेश दे कर द्वारिका नगरी में उद्घोषणा करवाई;
"सुनों, ऐ नागरिकजनों! इस मनोहर द्वारिका नगरी का विनाश होगी । इसलिए चेतो और सावधान हो जाओ । मोह-ममता छोड़ कर भगवान् अरिष्टनेमी के समीप निग्रंथप्रव्रज्या धारण कर मनुष्य-जन्म सार्थक करो।"
"जो भव्यात्माएँ संसार का त्याग कर प्रवजित होना चाहें, उन्हें मेरी आज्ञा है । रानियाँ, राजकुमार और कुमारियें, सेठ, सेनापति आदि कोई भी व्यक्ति, भगवान् के समीप जिन-दीक्षा धारण करेंगे, उन सभी का निष्क्रमण महोत्सव महाराजाधिराज श्रीकृष्ण करेंगे। इतना ही नहीं, दीक्षित होने वालों के पीछे जो बालक, वृद्ध, अथवा रोगी मनुष्य रहेंगे, उनकी साल-संभाल और पोषण भी महाराजाधिराज करेंगे । मत चुको यह उत्तम अवसर ।"
इस प्रकार सारे नगर में ढिंढोरा पिटवा कर उद्घोषणा करवाई-तीन-तीन बार।
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