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तीर्थङ्कर चरित्र
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पूर्व-भव और उसमें मुनिराज को नवकार मन्त्र सुनाते हुए देखेगा और तत्काल मुनिराज के सम्मुख उपस्थित होकर वन्दन-नमस्कार कर, अपने वानर-भव का परिचय देगा। इसके बाद उस मुनि को ले कर वह देव, आगे निकले हुए मुनियों के पास पहुंचा देगा।"
भगवान् के मुख से वैद्यों का भविष्य सुन कर श्रीकृष्ण बहुत प्रभावित हुए और वन्दन-नमस्कार कर स्वस्थान पधारे ।
भविष्य-कथन
भगवान् नेमिनाक से धर्म-परिषद् में श्रीकृष्ण ने पूछा
"भगवन् ! देवपुरी के समान अत्यन्त मनोहर एवं सर्वांग सुन्दर इस द्वारिका नगरी का विनाश किस निमित्त से होगा?"
-"सूरा, बग्नि बौर द्वीपायन के निमित्त से यह द्वारिका नष्ट हो जायगी"भगवान् ने कहा।
द्वारिका नगरी का भविष्य सुन कर श्रीकृष्ण चिन्तित हुए और मन-ही-मन सोचने नये;
___ "धन्य है वे बाली-मयाली यादि कुमार जो कि धन-सम्पत्ति और भोव-विलास का त्याग कर के भगवान् के समीप प्रक्ति हुए वीर मुक्ति -पच पर बागे बढ़ रहे हैं। में बधन्य हूँ, बकृत-पुण्य हूँ कि त्याग-माई पर नहीं चल कर भोग में ही बटका हवा हूँ"
श्रीकृष्ण के संकल्प-विकल्प को तोड़ते हुए भगवान् ने कहा
"कृष्ण ! तुम्हारे मन में विचार हो रहा है कि-'वे बाली-मयाली आदि राजकुमार धन्य हैं जो प्रवजित हो कर साधना कर रहे हैं। मैं अधन्य हूँ, आदि । किन्तु कृष्ण! ऐसा नहीं हो सकता, न पहले कभी हुआ और न भविष्य में कभी होगा कि तीन खण्ड के अधिपति वासुदेव, संसार का त्याप कर के प्रतबित हुए हों, या होते हों। नहीं, ऐसा हो ही नहीं सकता। क्योंकि सभी वासुदेव पूर्वभव में निदानकृत (संयम से प्राप्त शक्ति को किसी बाकर्षक निमित्त से विचलित हो कर, दांव पर लगाये हुए) होते हैं । इसलिए उनका उदयभाव भोगों का त्याग कर उन्हें निर्गव नहीं बनने देता।"
"भगवन् ! तब में काल कर के किस गति में जाऊँगा?" --" मदिरापान से उन्मत्त बने हुए यादव कुमारों के उपद्रव से कोधित हुए द्वीपायन
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