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________________ सदोष-निर्दोष चिकित्सा का फल ६२९ दिया है। उन्होंने भेरीपाल को मृत्यु-दण्ड दिया इसके बाद श्रीकृष्ण ने तेले का तप कर के उस देव से फिर दूसरी भेरी प्राप्त की और उस महारोग को द्वारिका से हटाया। सदोष-निर्दोष चिकित्सा का फल महारोग के उपद्रव के समय द्वारिका में दो वैद्य भी उपचार कर रहे थे। एक का नाम धनवंतरी तथा दूसरे का नाम वैतरणी वा। धनवंतरी ने साधुओं की चिकित्सा में सदोष एवं प्राणीजन्य औषधी बताई। साधुओं ने निर्दोष औषधी के लिये कहा, तो वह चिढ़ गया। उसकी प्रकृति पापपूर्ण थी। दूसरी ओर वैतरणी वैद्य निर्दोष औषधी देने का प्रयल करता । दोनों द्वारिका नगरी में ख्याति पा चुके थे। एकबार श्रीकृष्ण ने भगवान् नेमिनाथ से पूछा-"इन दोनों प्रसिद्ध और सेवाभावी वैद्यों की करनी का फल इन्हें क्या मिलेगा ?" भगवान् ने कहा--"धनवंतरी तो सातवीं नरक के अप्रतिष्ठान नरकावास में जायगा और वैतरणी वैद्य विध्याचल पर्वत पर वानर-समूह का अधिपति होगा। एक सार्थ के साथ कुछ मुनि विहार करते हुए विध्याचल पर्वत के समीप हो कर निकलेंगे। वहाँ एक मुनि के पांव में एक कांटा महरा पैठ जायगा। वे चलने में असमर्थ हो जाएंगे। तब वे मुनि अन्य मुनियों से कहेंगे कि इस भयानक अटवी में आप सभी का ठहरना उचित नहीं है। आप सभी पधारिये। मैं यहाँ अनशन कर के अन्तिम साधना करूँगा। इस प्रकार अत्यन्त आग्रह होने पर अन्य सभी मुनि विहार कर देंगे और वे मुनि एक वृक्ष के नीचे सागारी अनशन कर के ध्यानस्थ हो जाएंगे। उसके बाद कहीं से घूमता फिरता वह वानरपति मुनि को देखेगा और विचार करते हुए उसे अपना पूर्व-भव याद बाएगा, जिसमें उसने साधुओं की निर्दोष औषधी से सेवा की थी। उसे अपने वैद्यक-जान का भी स्मरण हो जायमा। वह उस वन में से विशल्या और रोहिणी नाम की दो बौषधियाँ लाएगा। विशल्या औषधी को खूब चबा कर मुनिराज के पांव में लगाएगा, जिससे वह शल्य (कांटा) खींच कर ऊपर आ जायगा। उसके बाद रोहिणी औषधी लगाने से घाव भर जायगा और मुनि स्वस्थ हो जाएंगे। फिर वह वानरपति, भूमि पर अक्षर लिख कर बतायगा कि "मैं द्वारिका में वैतरणी नाम का वैद्यक था।" इस पर से मुनि उसे धोपदेश देंगे और वह अनशन करेगा। मुनिराज उसे नवकार मन्त्र सुनाएँगे और वह शुभ भावों में काल कर के आठवें देवलोक में देव रूप में उत्पन्न होगा। उत्पन्न होते ही वह अवधिज्ञान से अपना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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