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________________ तीर्थकर चरित्र पर शिखा रखी और ऐसा रूप बनाया कि जिससे वह न तो गृहस्थ-दशा में और न साधुवेश में माना जावे । वह गीत और नृत्य में रुचि रखता है और कलहप्रिय है । दो पक्षों को आपस में लड़ा कर मनोरंजन करने में वह तत्पर रहता है। वह वाचाल भी बहुत है। दो राज्यों में संधी या विग्रह करवा देना उसके लिए खेलमात्र है । हाथ में छत्र, अक्षमाला, कमंडलु रखता और पाँवों में पादुका पहिन कर चलता है । इसका पालन देव ने किया, इसलिए यह 'देवर्षि' कहलाता है। यह ब्रह्मचारी है, किन्तु स्वेच्छाचारी है।" मरुत ने रावण के साथ अपनी 'कनकप्रभा' नाम की पुत्री का लग्न किया। सुमित्र और प्रभव मरुत राजा की पुत्री के साथ लग्न करके रावण मथुरा आया। मथुरा नरेश हरीवाहन, अपने पुत्र मधु के साथ रावण के स्वागत के लिए आया। स्वागत-सत्कार के पश्चात् रावण ने हरिवाहन राजा से पूछा--" कुमार के हाथ में त्रिशूल क्यों है ?" पिता का संकेत पा कर मधु ने कहा ___ "मेरे पूर्व-भव के मित्र चमरेन्द्र ने मुझे यह त्रिशूल दिया है त्रिशूल प्रदान करत समय उसने मुझे पूर्व-जन्म का वृत्तांत इस प्रकार सुनाया था "धातकोखण्ड द्वीप के ऐरावत क्षेत्र में, शतद्वार नगर के राजकुमार 'सुमित्र' और 'प्रभव' नाम के कुलपुत्र, सहपाठी थे। उन दोनों में अत्यंत गाढमैत्री सम्बन्ध था। वे सदैव साथ ही रहा करते थे। जब राजकुमार सुमित्र राजा हुआ, तो अपने मित्र प्रभव को भी उसने अपने समान ऋद्धि-सम्पन्न कर दिया । एक बार राजा सुमित्र, अश्वारूढ़ हो कर वनक्रीड़ा कर रहा था। घोड़े के निरंकुश हो जाने से मार्ग भूल कर चोरपल्ली में चला गया। पल्लीपति की युवती कुमारी वनमाला के अनुपम सौंदर्य पर मुग्ध हो कर राजा ने उसके साथ लग्न कर लिया । सुन्दरता की साकार लक्ष्मी वनमाला पर प्रभव की दृष्टि पड़ते ही वह मोहित हो गया । काम-पीड़ा से प्रभव चिन्तित रहने लगा । चिन्ता का प्रभाव शरीर पर भी पड़ा । वह दुर्बल होने लगा। अपने मित्र की दुर्बलता से राजा को खेद हुआ। उसने आग्रहपूर्वक कारण पूछा। प्रभव ने कहा;-- ____“मित्र ! मैं क्या कहूँ ? कहना तो दूर रहा, सोचने योग्य भी कारण नहीं। जिसके विचार के पूर्व ही प्राणान्त होना श्रेयस्कर है-ऐसा अधमाधम कारण मैं तुम्हारे सामने कैसे बताऊँ ?" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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