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________________ तीर्थङ्कर चरित्र और हित चाहता है, तो द्रौपदी देवी श्रीकृष्ण को लौटा दे। अन्यथा युद्ध करने के लिए तत्पर हो जा । श्रीकृष्ण-वासुदेव, पाँच पाण्डवों सहित यहाँ आ पहुँचे हैं ।" ६१० se दूत गया और पद्मनाभ के समक्ष पहुँचा । पहले तो उसने प्रणाम किया फिर कहा'स्वामिन् ! यह मेरा खुद का विनय है । अब स्वामी की आज्ञा का पालन करता हूँ ।" वह पद्मनाभ की पाद पीठिका ठुकराता और भाले की नोक पर पत्र देता हुआ पूर्वोक्त प्रकार से भर्त्सनापूर्वक सन्देश दिवा । दारुक द्वारा अपमान और भर्त्सना प्राप्त पद्मनाभ क्रोधित हुआ और रोषपूर्वक बोला---' 'मैं द्रौपदी को नहीं लौटाऊँगा । हां, युद्ध करने को तत्पर हूँ और अभी आता हूँ ।" इसके बाद बोला - " हे दूत ! तुम घृष्ट हो। तुम्हारी दुष्टता का दण्ड तो मृत्यु ही है। किन्तु राजनीति में दूत अवध्य है । अब तुम चले जाओ यहाँ से ।" उसे अपमानित कर के पिछले द्वार से बाहर निकाल दिया। इसके बाद पद्मनाभ सेना ले कर युद्ध करने के लिए उपस्थित हुआ । पद्मनाभ को युद्ध के लिए आता देख कर श्रीकृष्ण, पाण्डवों से बोले ; -- sepegesepeperepep Af 'कहो बच्चों ! पद्मनाभ के साथ तुम युद्ध करोगे, या मैं करूँ ?" 'स्वामिन्! हम युद्ध करेंगे । आप देखिये " -- पाण्डवों ने कहा और शस्त्रसज्ज रथारूढ़ हो कर पद्मनाभ के सामने आ कर बोले- #f पद्मनाभ ! आज या तो हम रहेंगे, या तुम रहोगे । आओ, अपना युद्ध-कौशल दिखाओ ।" युद्ध आरम्भ हुआ और पद्मनाभ ने थोड़ी ही देर में पाण्डवों पर भीषण प्रहार कर के उन्हें युद्ध भूमि से निकल भागने पर विवश कर दिया। वे लौट कर श्रीकृष्ण के पास आ कर बोले—— -- कककक कककका Jain Education International "स्वामिन् ! पद्मनाभ बड़ा बलवान् है । उसकी सेना भी उच्च कोटि की है । हम उस पर विजय प्राप्त नहीं कर सके और उसके प्रहार से भयाक्रांत हो कर आपकी शरण में आये हैं । आप जो उचित समझें, वह करें।" श्रीकृष्ण बोले--" देवानुप्रियो ! तुम्हारी पराजय का आभास तो उसी समय हो गया था, जब तुमने पद्मनाभ से कहा - " हम रहेंगे, या तुम रहोगे ।" तुम्हारे मन में अपनी विजय सन्दिग्ध लगती थी, इसी से तुम्हारी पराजय हुई । यदि तुम अपने हृदय में दृढ़ विश्वासी बन कर यों कहते कि - "पद्मनाभ ! तुझ दुराचारी पर हमारी विजय होगी। अब तू नहीं बच सकेगा ।" इस प्रकार दृढ़ निश्चयपूर्वक युद्ध करते, तो तुम्हारी विजय For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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