________________
पद्मनाभ की पराजय और द्रौपदी का प्रत्यर्पण ားသွားပာာာာာာာာာမျိုး လူးသား ၁၇
होती । अब तुम देखो में कहता हूँ कि " में विजयी हा कर रहूँगा और पद्मनाभ पराजित होगा ।"
श्रीकृष्ण रथ पर चढ़ कर पद्मनाभ के समीप पहुँचे और अपना पाँचजन्य शंख फूंका | शंख के घोर नाद से पद्मनाभ की तीसरे भाग को सेना भयभीत हो कर भाग गई । इसके बाद श्रीकृष्ण ने सारंग धनुष की प्रत्यंचा चढ़ा कर टंकार किया । इससे शत्रु सेना का दूसरा तिहाई भाग भी भाग खड़ा हुआ । शेष बचा हुआ भाग तथा पद्मनाभ साहसहीन, सामर्थ्यहीन ओर बल-विक्रम से शून्य हो कर युद्ध भूमि से पीछे हटे और नगर में घुस कर किले के द्वार बन्द कर दिये, फिर नगर में शत्रु प्रवेश नहीं कर जाय, इसकी सावधानी रखने लगा |
६११
कककककककककक
सेना सहित पद्मनाभ को भाग कर नगर में घुसते हुए देख कर, श्रीकृष्ण भी नगर के समीप आए और रथ से नीचे उतर कर वैकिय-समुद्घात किया, फिर विशाल नरसिंह का रूप धारण किया और पृथ्वी पर पाँव पछाड़ते हुए सिंहनाद किया। इससे राजधानी का दृढ़ प्राकार ( किला ) द्वार, अट्टालिकाएँ आदि प्रकम्पित हो कर टूट पड़े, बड़े-बड़े भवन और भण्डार भरपूर झटका खा कर ढह गए। पद्मनाभ स्वयं भान भूल हो गया । उसके जीवन के लाले पड़ गए। वह अन्तःपुर में द्रौपदी की शरण में गया और बोला -- “ देवी ! मैं तेरी शरण में हूँ | श्रीकृष्ण सारे नगर का ध्वंश कर रहे हैं। अब तू ही हमारी रक्षा कर ।"
& c
'पद्मनाभ ! क्या तुम श्रीकृष्ण के महाप्रताप को नहीं जानते थे ? पुरुषोत्तम कृष्ण-वासुदेव की उपेक्षा एवं अवज्ञा करते हुए तुम मुझे यहाँ लाये हो । तुम्हारी दुराचारी नीति ने ही तुम्हारी दुर्दशा की हैं। अस्तु, अब तुम जाओ, स्नान करो और भीगे हुए वस्त्र धारण करो | पहनने के वस्त्र का छोर नीचा रखो, अपनी रानियों को साथ लो । भेंट अर्पण करने के लिए श्रेष्ठ रत्न लो और मुझे आगे कर के उनके निकट ले चलो । वहाँ पहुँच कर श्रीकृष्ण के चरणों में गिरो और क्षमा माँग कर शरण ग्रहण करो । पुरुषोत्तम हैं । शरणागत-वत्सल हैं। वे तुम पर कृपा करेंगे । यही मार्ग तुम्हारी रक्षा का है ।"
पद्मनाभ ने द्रौपदी के कथनानुसार किया। श्रीकृष्ण से क्षमा याचना की और द्रौपदी देवी को उन्हें सौंप दी ।
श्रीकृष्ण ने कहा--" नीतिहीन, दुराचारी पद्मनाभ ! तू नहीं जानता था कि द्रौपदी देवी मेरी भगिनी है ? बा, अब तु निर्भय है ।"
पद्मनाथ को विसर्जित कर के द्रोपदी को रथ में बिठाया और उपवन में पाण्डवों के निकट आ कर द्रौपदी उन्हें सौंप दी ओर सभी वहां से लौट चले ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org